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बाचिन वह घायल युवक पड़ा अपने प्रारब्ध विकास की बान सोच रहा था। एक ही दुखदाई घटना ने, जिसे शायद ही कोई निमन्त्रित करे, उसके भाग्य का पाँमा पलट दिया था। वह सोच रहा था, क्या सचमुच मेरे ये फटे विधड़े, वह इटा छप्पर का घर, वह मान का चको पीसना, सभी बदल जायगा। वह जागते ही जागते स्वप्न देखने लगा-एक श्वल अट्टालिका. दास-दानी, घोडे-हाथी, सेना और न जाने क्या ? सभी विचार-धाराओं के ऊपर उसे एक नवीन विचार- धारा मूच्छिन कर रही थी-वह कौन है ? वहीं क्या इम सब भाग्य-परिवर्तन की कुंजो नहीं ? पालकी के उस दुर्भद्य पई के भीतर xxx! वह सोच में मूच्छित हो गया। हठान उसकी विचारधारा को धवा देते हुए कक्ष का पर्दा हटा कर दो दासियों के साथ एक खोजे ने प्रवेश किया। दासियों के हाथ में भाजन को सामना थी। स्वग्न-सुख की तरह कहीं बह राजभोग लुप्त न हो जाय, घायल युवक इस भय से लपक कर उठा। खाजे ने कहा--खाना खा लो, और खुदा का शुक्र करो। हुजूर शाहजादी तुम पर बहुत खुश हैं और वे जल्द तुम्हें देखने को तशरीफ लाने वाली हैं। X चन्द्रमा की स्निग्ध ज्योत्स्ना की तरह शाहजादी ने कक्ष में प्रवेश किया। दो अल्प-वयस्का दासियाँ परछाई की तरह उनके पीछे थीं। शुक्र, महीन रेशमी परिधान पर जरदोजी और सलमें का बारीक काम निहायत फसाइत से हो रहा था। वह अस्फुटित कुन्दकली के समान, कोमलता और माधुर्य की मूर्तिमती रेखा के समान समस्त भारत के सम्राट् की पौत्री शाहजादो गुलबानू थी। २