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चिरारा जल चुके थे। दीवाने खास में हजारा कानूस की तमाम कारी मोमबत्तियाँ जल रही थीं। जमुना की लहरों से धुल कर पूर्वी हवा झरोखों से छन-छन कर पा रही थी। खास- खास दरबारी बादशाह सलामत के तशरीफ़ लाने की इन्तजारी में अदब से खड़े थे। सामने एक चौकी पर वहीं युवक लहू. लुहान पड़ा था। अन्तःपुर के झरोखों से परिचारिकाओं के करठ-स्वर ने कहा-"होशियार, अदब कायदा निगह हार ! यह शब्द-स्वर चोबदारों ने दुहराया-"होशियार, अदब कायदा निगहदार !” उमरावमण्डल और मन्त्रिमण्डल ज़मीन तक सिर झुका कर खड़ा हो गया। सम्पूर्ण दरबार में निस्त- ब्धता छा गई। धीरे-धीरे वृद्ध सम्राट बहादुरशाह दो सुन्दरियों के कन्धों का सहारा लिए भीतरी ड्योढ़ी से निकल कर सिंहा- सन पर आ बैठे। चार बाँदियाँ मोरछल लेकर बगल में आ खड़ी हुई। चोबदार ने पुकारा-"जल्ले इलाही बरामद कर्द मुजरा अदब से ! यह सुनते ही एक उमराव सहमा हुआ अपने स्थान से आगे बढ़ा और सम्राट के सामने जाकर उसने तीन बार झुक्क कर सलाम किया। चोपदार ने उसके स्तवे और शान के अनु- सार कुछ शब्द कह कर सम्राट का ध्यान उघर आकर्षित किया। इसी प्रकार सभी सरदारों ने प्रणाम किया। इसके बाद बादशाह ने वजीर को सङ्केत किया। वजीर ने जवान से कहा-जवान ! तुम्हारे हालात बादशाह सलामत