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2 पतिता पहना दी, बालों का शृङ्गार कर दिया और कुछ अदव-कायदे की बातें समझा कर ड्योढ़ियों तक पहुँचा आई। मैंने देखा, उसने मुँह फेर कर आँसू पोंछ लिए । मेरा शरीर वास्तव में काबू में न था, मैं संभल ही न सको, बदहवास की तरह महाराज के सामने गिर गई। वहाँ क्या हो रहा था, वह सब मैं देख न सकी। मेरे होशहवास दुरुस्त न थे, पर वहाँ सभी लुच्चे लुगाड़े, नीच, शराबी इकट्ठे थे। वे नर-राक्षस और पिशाच थे। वे शराब पी-पीकर पशु हो गए थे। उन्होंने लज्जा बेच खाई थी। मुझ पर जैसी बीतो, वह मैं वेश्या होकर भी वर्णन नहीं कर सकती। जगत का कोई भी खूखार पशु किसी अबला स्त्री पर इतना अत्याचार न कर सकेगा। बरसे जलती हुई, थकी हुई, मुझ बदहवास गरीब असहाय स्त्रो के साथ उन कुचों ने क्या-क्या करने और न करने योग्य न किया? सारा संसार यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि मुझ पर जो बीती और मैंने जो देखा, वह सम्भव भी हो सकता है, पर मेरे साथ तो वह हुआ जब तक मैं होश में रही और मेरे शरीर में पल रहा, मैंने उन भेड़ियों को रोका। प्रतिकार किया, परन्तु मैं शीघ्र ही बदहवास हो गई और मैं उसी अवस्था में डोली पर लाद कर दिन निकलने से पूर्व ही दिल्ली को रवाना कर दी गई। मैंने सब सेकिण्ड क्लास के जनाने डब्जे में मैं अकेली थी, खिड़कियाँ खुलवा दो थीं। सुबह की ठण्ढो-ठण्डी हवा से मेरी