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(अठारहवां
लवङ्गलता।


जाफ़रखा़ के सूबेदार बनाने पर नव्वाबी खज़ाने से जो कुछ रुपए अंग्रेज़ों को मिलेगे उनमें से पांच रुपए सैकडे मैं लूंगा, जिसका एकरारनामा कम्पनी अभी मुझे लिखदे, नहीं तो यह सारा भेद मैं अभी सिगजुद्दौला के आगे खोलकर सभोको आफ़त में डाल दूंगा।"

यह सुनते ही अगरेज़ों के छक्के छूट गए और उनलोगो ने समझ लिया कि—एक तो हमलोगों के अत्याचार से यह बेचारा पिस ही गया है, दूसरे अब यदि इसे राजी नहीं कर लेते तोयह ज़रूर नवाब के आगे सारा भेद खोल देगा और हमलोगो को बड़ो भारी वलामे फसावेगा।' पर उतना रुपया अमीचन्द को देना अगरेज़ो को कब स्वीकार होसकता था, इसलिये उनलोगो ने अमीचन्द को राजी करने के लिये अपना काम बनाया और दो रग के कागजो परदोतहर के अहदनामे लिखे गए। लाल काग़ज पर जा अहदनामालिखा गया, उसमे तो पाचरुपए सैकड़े अमीचन्द को देने का इकरार था, किन्तु जो अहदनामा सफ़ेद काग़ज़ पर लिखा गया, उसपर उन बेचारेका कहीं नाम भी न था! ये दानो काग़ज़ .ब दस्तखत होने के लिए कौसिलbमे पेश किए गए तो अडमिलर अर्थात् अमीरुलबहर ने लाल काग़ज़ पर हस्ताक्षर करना स्वीकार नहीं किया, तब कौसिलवालो ने उस का दस्तख़त आप बना लिया[१]

निदान, क्लाइव तीन हज़ार लड़ाके और नौ तोपें लेकर कलकत्त से चला और सिराजुद्दौला भी पचास हजार सवार-प्यादे और चालीस तोपे लेकर पलासी के मैदान मे आ धमका, सैकड़ों फरा- सीसी भी उसके साथ थे। तेईसवी मई को प्रातःकाल उसी जगह लडाई प्रारम्भ हुई और सिराजुदोला ने बिजय पाई। फिर चौबीसवी को जब कम्पनी की सेना मे लडाई के बाजे बजने लगे मीरजाफ़र ने अपनी सेना को लड़ाई के लिए तैयार होने से रोक दिया हाय रे स्वार्थपरता!!! और धिक् विश्वासघातकता!!!

अपने सेनापति मीरजाफर कायह ढंग देख सिराजुद्दौला बहुत ही घबराया और उसने मीरजाफ़ार का बहुत कुछ समझाया, पर

जब उसने किसी तरह भीलडने की सलाहन दो,तबसिराजुद्दौलाने


  1. इस पर राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द जी लिखते है कि—"मानो फ़ारसी मसल पर काम किया,—"गर ज़रूरत बुबद ख़ां बाशद।"