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परिच्छेद]
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आदर्शवाला।


अगरेजों ने उसी शर्त पर, जो कि सिराजुद्दौला के साथ हुई थी और जिसका हाल हम ऊपर लिख आए हैं, मीरजाफरखां से एक अहदनामा लिखवा लिया और उसमें इतना और बढ़ाया कि,—

"अब तक फ़रासीसियों के लिये जो कुछ हुआ है, या उनका जो कुछ हो, वह अगरेजों के लिये हो या अंग्रेज़ों का हो, फ्रांसीसी सदा के लिये बंगाले से निकाल दिए जायं और मीरजाफरखां कड़ोर रुपये कम्पनी को, पचास लाख कलकत्ते के अगरेज़ों को, बीस लाख हिन्दुस्तानियो को, सात लाख अर्मनियो को, पचास लाख सिपाहियों और जहाजियों को और दसलाख कौंसिल के मेम्बरों को नुकसानी या नज़राने के तौर पर दे और कलकत्ते से दक्खिन कालपी तक कम्पनी को ज़िमीदारी समझी जाय।"

कलकत्ते के महाधनी महाजन सेठ अमीचदयदि अंगरेजोंकी हर तरह से सहायता न किए होते तो अंगरेजो के लिये सिराजुद्दौला को तख्त से उतारना बहुत ही कठिन होता, किन्तु उन्हीं अगरेज़ों ने सेठ अमीचंद पर जैसे जैसे भयानक अत्याचार किए, उसका साक्षी इतिहास है। सो कम्पनीवालों के अत्याचार से सेठ अमीचन्द का घर खब ही लूटा गया था, इसलिये जब मीरजाफ़रखां के साथ कम्पनीवालों का अहदनामा होने लगा तो इस खबर को पाकर सेठ अमीचन्द[१] भी उसमें जा पहुंचे और लाचार अंगरेज़ों को उन्हें भी उस कमेटी में रखना पड़ा। सेठ अमीचन्द सिराजुद्दौला के मुंह लग गए थे और वह उनकी बात भी बहुत मानता था और बाट्स साहब का भो उनसे बहुत काम निकलता था, इसलिये उन्हें उस कमेटी में न रखना अगरेजों की सामर्थ्य से बाहर था।

यह एक ऐसा मौका था कि अमीचन्द अंगरेजों से उनके अत्या. चार का बदला लें और अपनी हानि मिटा डालें, इसलिये उन्होने

क्लाइव से कहा कि,—" सुनिए, साहब! आपलोगों ने बिना कारण जो कुछ अत्याचार मुझपर किए, या मेरा मर्वस्व लूटकर मेरे घर को उजाड़ डाला, इसकाहाल तो आपलोगो का जीही जानता होगा कि आपलोगों ने अपने ५क उपकारी मित्र को उसके उपकारों का किस भांति बदला चुकाया!!! अस्तु, अब बात यह है कि मीर-


  1. भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र इसी वंश में हुए थें।