और काबू पाने के लिये ही सुलह की थी, क्योकि जी उसका मैला था, अगरेजों से वह भीतरी डाह रखता था और फ़रासीसियों, का पक्ष करता था, वरन अपने यहां उन्हें नौकर भी रखने लग गया था।
उसकी इन चालवाज़ियों से क्लाइव अनजान न था, वह भी मौका ढूंढ़ रहा था। उसने मन ही मन इस बात पर भली भांति बिचार कर लिया था कि,—'इस देश में या तो अगरेज़ ही रहेंगे, या फ़रासीसी; क्योकि जैसे एक मियान में दो, तलवारें नही रह सकती, वैसे ही एक देश में अंगरेज़ और फ़रासीसी-दोनो कभी नही रह सकते।
निदान, जब सिराजुद्दौला ने फ़रासीसियों का सहारा लिया तो लाचार होकर क्लाइब को भी उसका उपाय करना पड़ा। उस समय सिराजुद्दौला के अत्याचारो से सभी उससे फिर गए थे और सभों को अपने जान माल और इज्जत-आबरू का खटका हरदम बना रहता था। सो यह मौका क्लाइब के लिये बहुत अच्छा था. इसलिये वह सिराजुद्दौला के दरवारियो और कारपर्दाज़ो को अपनी ओर तरह तरह के लालच देदे कर मिलाने लगा।
निदान, अलोवर्दीखा के दामाद मीरजाफ़रने, जो सिराजुद्दौला का ख़जानची यासेनापति था,और दीवान राजारायदुर्लभ तथा जगतसेठ महताबराय ने[१]अपने जान-माल.और इज्जत-आबरू उस अत्याचारी के हाथ से बचाए रखने की इच्छा से मुर्शिदाबाद के रजीडट बाट्स साहब के द्वारा क्लाइव से यह कहलाया कि,—" यदि आप सिराजुदौला की जगह मीरजाफ़रखां को सूबेदार बनावें तो हम सब आपके सहायक होगे।” इस पर चतुरशिरोमणि लाट क्लाइव ने कहला भेजा कि,—"आप लोग धीरज रक्खे, मै ५००० ऐसे सिपाही साथ लेकर आता हूं कि जिन्होने आज तक कभी रन मे पीठ नही दिख. लाई है। यदि आपलोग सिराजुद्दौला को गिरफ्तार करा देंगे तो मै आपलोगो का कृतज्ञ होऊगा और आपलोगो के कहने के अनुसार मीरजाफरखां को बगाले का नव्याय बनाऊगा।"
फिर तो आपस मे नित्य नई नई शर्ते होने लगी, पर अत में
- ↑ हिन्दी भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान् लेखक राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द इसी वंश में हुए थें।