पाठक! इस पत्र को पढ़कर भी मतिहीन सिराजुद्दौला के हिये
की आँखें न खुली और उसने लुत्फ उन्निसा के मरने के मुख्य कारण को सुना कर उसका पत्र भी मीरजाफ़र को दिखला दिया! किसीने सच कहा है कि,—'विनाशकाले विपरीनवुद्धिः!"
अब हम आगे चलकर यह दिखलायेगे कि बुद्धिमती लुत्फ़उन्निसा की नेक सलाह के न मानने के कारण सिराजुद्दौला का क्या परिणाम हुआ और स्वामिद्रोही मीरजाफ़र ने किस भाति उसे विनष्ट करके बगाले की राजगद्दी पर अपना सरल जमाया!
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अठारहवां परिच्छेद
विधि-प्रतिकूलता
प्रतिकूलतामुपगते हि विधौ,
विफलत्वमेती बहु साधनता।
अवलम्बनाय दिनमर्तुंग्भू—
न्न पतिष्यतः करमहस्त्रलमपि॥"
(नीतिमाला)
सन् १७९६ ईस्वी में सदाशय अलीवर्दीखां के मरने पर उनके भतीजे जैनुद्दीन का बेटा, अर्थात् उनका नाती सिराजुद्दौला बंगाल, बिहार और उड़ीसे का सुबेदार हुआ, जिसने मुर्शिदाबाद को अपनी राजधानी बनाया। वह बडा क्रोधी, हठी, अत्याचारी, तथा इन्द्रियपरायण था और अगरेजों से बड़ी डाह रखता था। जब उसने यह सुना कि,—'मेरे खजानची राजा गयदुर्लभ ने अपना सारा मालमता और घरबार के लोगों को मेरे पजे से निकाल, अपने लड़के कृप्यदास के साथ अंगरेजों की सरन में कलकत्ते भेज दिया है.'तो तुरत उसने, रायदुर्लभ को कैद कर लिया और एक दूत को कलकत्ते अगरेजो के पास इसलिये भेजा कि,—'वह उनसे रायदुर्लभ के बेटे आदि को'मांग लावे।' वह मनु य कलकत्ते मेरीवाले सौदागगे के भेस में पहुंचा और सेठ अमीचन्द के मकान पर ठहरा। ममाचन्द ने