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[सत्रहवां
लवङ्गलता।


सिराजुद्दौला बक झक करता हुआ आपही वहा से उठकर चला गया और उसके जाने पर सती लुत्फ़उन्निसा अपना सिर धुन धुन कर घटो तक खूब रोई। फिर उसने किसी किसी तरह अपनाजी ठिकाने किया और एक पत्र सिराजुद्दौला के नाम लिख और उसे एक लौडी के हाथ उसके पास भेज कर उस (लुत्फउन्निसा) ने सिराजुद्दौला की तस्वीर का चूनकर एक ज़हरीली कटार अपने कलेजे के पार करली और कमरे के फर्श पर गिरते ही मरगई। इधर उस पर को पाकर जब तक सिराजुद्दौला उसके पास आवे, उसके प्राणपखेरू देह-पिंजर' छोड़कर सती-लोक को उड गये थे!

निदान, सिराजुद्दौला ने आकर जब अपनी प्यारी बेगम को मुर्दा पाया तो वह बहुत ही रोया,पर फिर रोने-गाने से होताहो क्या था!

हीराझील के अन्दर ही लुत्फ उन्निसा कत्र के अन्दर सुला दी गई और सिराजुद्दौला पलासी को लड़ाई में फंस जाने के कारण उस (बेगम) को बिल्कुल भूल गया।

किन्तु उस पत्र मे लुत्पाउन्निसा ने क्या लिखा था? सुनिए, उसके पत्र को नकल यह है,

"प्यारे नव्वाब!

"अफसोल, सद अफ़सोस का मुकाम है कि आपने मुझे फ़ाहिशा ओर अपनी बर्बादी का सबब समझा! खैर, आपको अख्तियार हासिल है कि आप जो चाहे, समझे, मगर जब कि आपका दिल मेरी जानिब से इस कदर फिर गया आपने अपनी ज़बान से मुझे फ़ाहिशा कहा, तो अब मैं इस दुनियां मे रहना या आपको अपना काला मुह दिखलाकर रजीदा करना नही चाहती! इसलिये प्यारे! अब मैं आपसे रुखसत होती है और दस्तबम्तः आपसे अर्ज करती हूं कि आप मेरे उन कुसूरो को मुआफ़ करेगे, जो कि मुझसे जान मे वा अनजान मे हुए होगे!

"मैं फाहिशा हूं या नहीं, और आपकी बर्बादी चाहती हूं या क्या चाहता हूं, इसका हाल फ़क़त खुदा जानता है, मगर प्यारे, नवाब! मैं अखीर मे फिर भी आपसे यह अर्ज करती जाली हूँ कि आप दगाबाज़ मीरजाफ़र से होशियार रहिएगा और अंगरेज़ों को हर्गिज़ नाखुश न कीजिएगा!

फ़कत आप ही की—कम्बख्त—लुत्फ उन्निसा।"