"अक्खाह! इस बात का तो मुझे भरोसा ही न था कि इस समय यहां पर आपसे भेंट होजायगी! अस्तु, कहिए, जनाब सैय्यद अहमद साहब! आप पर नवाब साहब की आजकल इतनी नाराज़ी क्यों है?"
इतना कहकर सेठ अमीचंद ने उस मुसलमान युवक का हाथ थाम्ह कर उसे एक संगमर्मर की चौकी पर बैठाया और दूसरी पर आप बैठे। इस युवक का नाम तो पाठक जान ही चुके है कि 'सैय्यद अहमद' है। यह सिराजुद्दौला का बहनोई है इसे सिराजुद्दौला की बड़ी बहिन नगीना बेग़म ब्याही गई है। यह सिराजुद्दौला का मुसाहब भी है और उसे अनेक कुकर्मो में डुबाए रखने की जड़ भी यही है। इसने चौकी पर बैठकर ठंढी सांस भरी और कहा- जनाब! सेठ साहब! क्या कहूं, खुदा ने बडी खैर की, नहीं तो मैं अब तक कभी का इस ज़ालिम सिराजुद्दौला के हाथ से मारा गया होता! मेरा दर्बार बंद है और मुझे इस इमारत के अंदर आने का हुक्म नहीं है, मगर मैंने सुना है कि इस वक्त आप नव्वाब से मुलाकात करने आए है, लिहाज़ा, मैं भी जान पर खेलकर आपसे कुछ अर्ज करने की नीयत से यहां आया हूं।
"अवश्य मैं आपकी बातें सुनूंगा किन्तु पहिले आप यह तो बतलाइए कि आपके ऊपर इतनी नाराजी होने का कारण अमीचंद, क्या है?
सैय्यद अहमद, "सुनिए, अर्ज करता हूं। उस दिल्लीवाली फैज़ी रंडी को तो आप ज़रूर जानते होंगे!"
अमीचद,-"हाँ! जिस पापिन ने सिराजुद्दौला को गुलाम बना लिया था, और सच तो यों है कि उसी जहरीली नागिन ने ही इसे संसार भर के सारे कुकर्मो में डुबाया! किन्तु, साहब! नव्वाब तलक उस रंडी के पहुंचानेवाले भी तो आप ही है न।"
सैय्यद अहमद,-(शर्माकर) "बस मुआफ़ कीजिए, मैं अब अपने किए को पहुंच गया हूँ। हां, तो उस (फैजी रंडी) से मेरी पहिले की ही आशनाई थी, चुनांचे सिराजुद्दौला के हरम में दाखिल होने पर भी मैं चुपके चुपके उसके पास जाया करता था। एक दिन रात के वक्त शराब के नशे मे गर्क हो, हम दोनों एक पलंग पर सोए हुए थे कि सिराजुद्दौला वहीं पहुंच गया। आख़िर, नींद खुलते ही मैं