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पड़ा था। और यह बात तो लग के लिये बड़े गौरव को थी कि उसने अपने अनुरूप, सब-गुण-सम्पन्न पति को पाया था। जो कदाचित इसलिये, कि जिसमे विधाता की विषमता का प्रायश्चित्त होजाय और उस (विधाता) पर से अनमेल जोड़ी के मिलाने का फलंक जाता रहे!!!

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सोलहवां परिच्छेद.
हास-बिलास!

"जानीमहे नववधूरथ तस्य वश्या,
यः पारदं स्थिरयितुं क्षमते करेण।"

(रसमञ्जरी)

रात्रि का समय है, निद्रादेवी के शान्तिमयकोड में संसार सुख से पड़ा सो रहा है और दिन का कोलाहल न जाने कहां पर पड़ा पड़ा विश्राम कर रहा है। ऐसे समय मे हम राजनदिनी लवंगलता को अपने रगमहल में कुछ और काम में लगी हुई पाते है। कुमार मदनमोहन गहरी नीद मे सोए हुए है, परन्तु लवंगलता जाग रही है और पलंग पर बैठी हुई धीरे धीरे अपने प्रियतम का पैर दबाती, उनके मुख को आंखे गड़ाकर निहारती और रह रह कर धीरे से इस भांति उनका कपोल चूम लेती है, जिसमे वे जाग न उठे। घंटो तक वह पलग पर बैठी हुई यही किया की, इतने ही मे मदनमोहन ने एकाएक आखें खोल दी और लवंगलता की ओर देख, खिलखिला कर हस दिया! फिर उन्होने बैंच कर अपनी प्रियतमा को हृदय से लगा लिया और उसके कपोलों का सैकड़ों बार चुम्बन कर के हंस कर यो कहा,—

"प्यारी! पहिले तो तुम्हीने सो जाने का छल किया था!"

लवंग॰,—"जो हां! परन्तु आपने मुझे सोई हुई जानकर या मा नहीं किया था!"

मदन॰,—"किन्तु, तुम धन्य हो कि तुमने वह चुप्पी साधी थी कि मुझे यह सनिक भी न जान पड़ा कि तुम सोई नहीं हो, और