जवाहिरात के साथ घर की स्त्रियो को लेकर वहांसे भागने का
विचार करने लगे, तब अगरेजो ने कुढ़कर उनके घर को घेर लिया।
फिर तो सेठ अमीचंद के सिपाहियों और अग्रेजो के नौकरों मे
लड़ाई होने लगी और अंग्रेज़ी सेना अमीचद के नौकरो को मार
जनाने महल मे घुस चली । उस समय अमीचद के जमादार रघुबीर
सिंह का खून उबलने लगा और उस बीर क्षत्रिय ने असूर्यम्पश्या
आर्यमहिलाओ पर राक्षसी अत्याचार होने कोन सहकर अपने हाथ
से घर की तेरह स्त्रियों के सिर काट, उन्हे चिता मे जलादिया और
फिर अग्रेजी सेना से जूझकर वह वीर बैकुठ सिधारा ।देखते देखते
महामानी, अर्वखर्वपति, श्रेष्ठकुलतिलक, अमीचद का राजप्रासाद
भस्मसात् होगया!
इतने ही मे सिराजुद्दौला ने कलकत्ते पहुंचकर अंग्रेज़ो को हराया और सेठ अमीचद को उन अत्याचारियो की कैद से छुड़ाया इसके बाद फिर भी अग्रेज़ लज्जा खोकर अमीचंद के शरण मे गए, रोए, गाए, और सदाशय अमीचद् ने उनकी राक्षसी लीला भूलकर फिर भी उनकी सहायता की, यह बात इतिहास मे लिखी है।
दोपहर का समय है, भागीरथी के पश्चिम तटपर "हीराझील" (१) नामक सुन्दर राजप्रासाद् मे नवाब सिराजुद्दौला आज कल रहा करता है। उसी प्रासाद के विशाल उद्यान मे सिर झुकाए हुए सेठ अमीचद टहल रहे है, क्योकि नव्वाब साहब से भेट होने में अभी कुछ बिलम्ब है।
टहलते टहलते सेठजी एक सरोवर के किनारे एक लतामंडपके पास पहुंचे और वहांपर एक संगमर्मर की चौकी पर बैठकर सुस्ताने लगे। उन्हें वहां पर जाकर बैठे अभी पांच मिनट भी न बीते होगे कि लताओ की झुरमुट मे से निकलकर एक बीस-बाईस बरस का, लबे कदवाला, सुन्दर युवक उनके सामने आ खड़ा हुआ। चार आंखे होते ही सेठ अमीचंद ने उठकर सलाम किया और कहा,-
(१) इस प्रासाद को सिराजुद्दौला ने अपने भोग विलास के लिये बनवाया था और एक दिन अपने नाना अलीबर्दी खां को यहां पर कौशल से कैद करके बड़ी गहरी रकम ऐय्याशी मे फूंकने के लिये लेकर तब अलीबर्दी को कैद से छोड़ा था।