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[तेरहवां
लवङ्गलता।


मदहमोहन लवंग को लेकर बेखटके निकल जायं।' परन्तु ऐसा न हुआ; क्योकि नगीना, तथा शेरसिंह की सलाह से मदनमोहन रंगपुर का सीधा रास्ता छोड़कर उसी बीहड रास्ते से चले, .जिस रास्ते से लवंग को नज़ीरखां ले आया था। परन्तु मीरजाफ़र मदनमोहन की तलाश से रंगपुर के सीधे रास्ते की ओर गए; यही कारण था कि मीरजाफ़र से मदनमोहन की भेट न हुई। हां, एक, दो सौ सवारों के रिसाले ने मदनमोहन को अवश्य घेर लेना चाहा, जो धावा मारता हुआ उनकी तथा नगीना की खोज मे उसी ओर जा निकला था

यह बात हम कह आए है कि मुर्शिदाबाद आती बेर मदनमोहन मंत्री माधव सिंह से किसी प्रकार के प्रबन्ध की बात पक्की करते आए थे। सो, उसी प्रबन्ध के अनुसार माधवसिंह सौ सवारों के साथ उस जंगल में डेरा डाले हुए थे। जय वहां सदनमोहन पहुंचे, तो मंत्री ने उनका तथा कुमारी लवंगलता का अभिनन्दन किया और सब लोग रंगपुर की ओर बढ़े। ठीक उसी समय नव्याब सिराजुद्दौला के दो सौ सवार ओ पहुंचे, पर वे मदनमोहन, माधवसिंह, शेरसिह आदि महावीरो के समाने कब ठहर सकते थे! आखिर, जब आधे सवार कट गए तो बाकी के भाग गए और उन्होंने लौटकर सिराजुद्दौला से सारा हाल कह सुनाया, जिसे सुन वह मणिहीन सर्प की भांति सिर धुनने के अतिरिक्त और कुछ भी न कर सका।

कुमारी लवंगलता निर्विघ्न गजमन्दिर पर लौट आई और घर आने पर उसे अपने पूज्य पिताके स्वर्गारोहण करने कासमाचार विदित कराया गया। पिता के परलोकबासी होने के समाचारको सुनकर उसे कितना दुःख हुआ होगा, इसे भुक्तभोगी पाठक ही जान सकते है! अस्तु।

निदान, नगीना तथा सैय्यदअहमद का पता न लगा और सिराजुदौला हजार हजार तरह से सिर धुन और हाध मलकर रह गया! फिर उसने रंगपुर और दिनाजपुर पर एक साथ चढ़ाई करने का मन्सूबा बांधा, परन्तु ईश्वर को तो कुछ और ही करना था, सो पलाती की लडाई छिड़ गई और उस (सिराजुद्दौला) के मनकी मन ही रह गई!