को न पाया। इसका यह कारण था कि बेहोशी के दूर होते ही उसने जो वहां पर पड़े हुए एक पुरज़े को पढ़ा, तो वह बहुत ही घबराया और चट बाहर जाकर चारो ओर इसलिये उसने सवार दौड़ाए कि जिसमे वे सवार मदनमोहन, लवंगलता, नगीना, सैय्यद-अहमद इत्यादि को पकड़ लावें!
वह पुरजा, जिसे सिराजुद्दौला ने बेहोशी दूर होने पर अपनी मुहर के साथ उसी गोल कमरे में पाया था, मदनमोहन के हाथ का लिखा हुआ था,उसमे उसने अपनी और नगीना की सारी कार्रवाई का हाल लिखकर सिराजुद्दौला से यही बिनती की थी कि,—'अब वह कृपाकर हमलोगो का पुछा न करे।' और लुत्फ़उन्निसा को उस (नगीना) ने अपना और लवगलता का सारा हाल संक्षेप में लिख कर उससे इस बात की प्रार्थना की थी कि,—'वह नव्वाब को समझा बुझा कर उसे अपने या लवंग के विरुद्ध कुछ कार्रवाई करने से रोके।'
किन्तु लुत्फ़उन्निसा के आने के पहिले ही सिराजुद्दौला उस कमरे से बाहर निकलकर दरवार में चला गया था और वह नगीना तथा लवंग पर इस कदर क्रुद्ध होरहा था कि उसने तुरन्त मीरजाफ़र को बुलाकर चारो ओर सवारो के दौड़ाने तथा नगीना, लवंगलता, सैय्यद-अहमद,और मदनमोहन आदि के पकड़ लाने का बड़ा कड़ा हुक्म दिया था।
यद्यपि मीरजाफ़र यह नहीं चाहता था कि,—'अपने मित्र (नरेन्द्र) के मित्र (मदनमोहन) पर या मित्र की बहिन (लवंग) पर फिर आफ़त आवे और वे फिर इस बला मे फस जाय; पर जब उसने इस कार्रवाई का मूल नगाना को जाना, तो वह बहुत ही घबराया; क्योकि सैय्यद-अहमद के छूटने से वह बहुत ही भयभीत हुआ था! इसका कारण यही था कि उसके षड्यत्र के सारे भेद को सैय्बद-अहमद भली भाति जानता था! अतएव जब मीरजाफ़र ने सैय्यद-अहमद को कैद से छुड़ाकर नगीना के भागने का हाल सुना तो, वह बहुत ही घबराया और सैकड़ों सवारो को नगीना तथा सैय्यद अहमद के पकड़ लाने के लिये इधर-उधर दौडाकर स्वयं थोड़े से सवारो के साथ वह उधर चला, जिधर से मदनमोहन के जाने को धात उसे मालूम थी। उसका अभिप्राय यही था कि,—'जिसमे