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[तेरहवां
लवङ्गलता।


का अभिप्राय कुछ दूसरा ही था। वह इस बात को समझ चुकी थी कि,—'जब तक इन दुष्टों को जेल न भेज सकूँगी, सिराजुद्दौला हाथ से छुटकारा पाना कठिन ही नहीं, बरन असभव भी हो जायगा, क्योंकि नजीर जैसे धूर्ती को जब मैं जेल भेज सकूँगी, तो फिर सिराजुद्दौला को मलिन कर्म में नेक सलाह देनेवाले कदाचित वैसी प्रखरबुद्धि के मनुष्य न मिलेगे और मेरे छुटकारे में भी विशेष बाधा न पड़ेगी।

किन्तु ईश्वर को तो कुछ और ही स्वीकार था! अर्थात् सैय्यद अहमद के जेल जाने से वेचारी नगीनाबेगम बहुत ही दुखी रहती थी और वह रात दिन इसी सोच में पड़ी रहती थी कि क्योंकर अपने नालायक पति का उद्धार करे! यद्यपि फैज़ी रंडी के कारण जब सिराजुद्दौला अपने बहनोई सैय्यद अहमद पर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ था तो उस समय उसे उसकी बहिन और मां ने किसी किसी भांति मना मुनं कर राजी कर लिया था, परन्तु जब कि राजविद्रोहिता के अपराध मे सैय्यद अहमद कैद हुआ तो सिराजुद्दौला ने अपनी मां और बहिन के बहुत कुछ विनय करने पर भी उसे न छोड़ा। यही कारण था कि नगीनाबेगम रात दिन इसी सोच मे डूबी रहती थी कि,—'क्यो कर अपने पति का उद्धार करे!'

नगीना गुप्तरीति से रात दिन अपने भाई सिराजुद्दौला और उसके दरवारियो के पीछे छाया की भांति लगी हुई थी। वह अपने भाई और उसके दरवारियो का रत्ती रत्ती हाल जानने की कोशिश करती और उसमें कृतकार्य भी होती थी। मीरजाफ़र से वह बहुत ही होशियार रहती, क्योकि इस बात को वह भलो भाति समझ गई थी कि,—'इस दुष्ट के जानते भर मे मेरे पति काछुटकारा पाना असभव है!' अतएव लवंगलता का पकड़ कर आना और उसका उस तिलस्मी गोल कमरे में कैद होना नगीना बेगम से छिपा न रहा इस अवसर को नगीना ने अपने हाथ से जाने न दिया और बहुत कुछ पूर्वापर को सोच विचार कर वह लगलता से मिली, जिसका हाल हम ऊपर लिख ही आए हैं।

नगीनाबेगम ने इस बात को भलो भाति समझ लिया था कि जब तक किसी का उपकार न किया जाय, स्वय किसीसे उपकार पाने की आशा करनी व्यर्थ है; क्यों कि यह ईश्वरीय नियम है कि