तेरहवां परिच्छेद.
जैसा काम वैसा परिणाम।
"यथा करोति कर्माणि तथैव फलमश्नुते।"
(शान्तिपर्व)
पाठक इस बात को भूले न होगे कि सिराजुद्दौला ने अपने बहनोई सैय्यदअहमद को किस अपराध में फैद किया था! यदि वह (सैय्यद॰)महाराज नरेन्द्रसिंह की जड़ काटने के लिये उद्यत न होता, और मीरजाफर ख़ां के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करता तो निश्चय है कि वह कदापि जेलखाने की गदी हवा खाने के लिये लाचार न किया जाता। धन्य महिमा है, उस सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर की कि जिस लवंगलता के लिये सैय्यदअहमद ने अपने को आप जेल का बंधुवा बनाया था, वही (लवंग) उसको बधन से छुड़ाने की कारण हुई!
यह बात हम कह आए है कि जब कुमारी लवंगलता प्रातःकाल उस जंगल में होश में आई थी और उसने अपने को आपतायियों के पजे में फंसी हुई पाया था, तो चट उसने मन ही मन इस बात का निश्चय कर लिया था कि,—"अब बिना चाणक्य की इस नीति,—"अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठके। स्वकार्य साधये- द्धीमान् कार्यध्वंसो हि मूर्खता।"—का अवलवन किए, इस आफ़त से छुटकरा पाना असम्भव है!" अतएव उसने अपने कर्तव्य को उसी समय मन ही मन स्थिर कर लिया था और इस बात पर भी भली भांति बिचार कर लिया था कि,—'अब किस पथ का अवलम्बन करने से दुराचारी नव्वाब के जाल से छुटकारा मिल सकता है!'
इसीलिये उसने उस समय जिस ढंग की बाते नज़ीरखां से की थीं, उसका हाल पाठक जानते हैं और यह भी पाठकों को विदित है कि उसने किस भांति नज़ीर आदि बीसो आततायियो के नाम लिख लिए थे। उस समय उन सभी के नाम लिखने से लवंगलता