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[बारहवां
लवङ्गलता।

हीराझील प्रासाद के अन्दर चली गई और कमद हटा लीगई।

उसके जाने पर मदनमोहन ने लवंगलना से पूछा,—"क्या सिराजुद्दौला की बहिन नगीनाबेगम यही है!"

लवंग॰,—(ताज्जुब से) "ऐ! आपका चित्त इस समय किधर है? आपसे तो मैने इनका सारा हाल कहा था न!"

मदन॰,—" ओह! निस्सदेह, इस समय मेरा जी ठिकाने नही है। अस्तु, अब चलिए, यहां पर पलभर भी ठहरना उचित नहीं है।" यो कहकर मदनमोहन लवंगलता का हाथ पकड़ कर आगे बढ़े और सब लोग पीछे पीछे चले। झाड़ी से निकलने पर कई घोड़ों के साथ मीरजाफ़रखां मिले, जिन्होने मदनमोहन से हाथ मिला कर जल्दी मुर्शिदाबाद से निकल जाने के लिये कहा, कहा कि,—" हमने महाराज नरेन्द्रसिंह को इस बात की ख़बर देदी है।"[] निदान, फिर तो सब लोग घोड़ों पर सवार होकर मुर्शिदाबाद से कून कर गए।

उधर नगीनावेगम जेल में पहुंची और नव्याब की अंगूठी दिखलाकर अपने नालायक पति सैय्यदअहमद को कैद से छुड़ा उसी सुरग से फिर उस गोल कमरे मे आई, जहांपर सिराजुद्दौला बेहोश पड़ा हुआ था। वहां पर उसने उसकी मुहर डाल दी और फिर सुरंग से निकल और एक जवाहरात की पेटो अपने साथ ले, अपने शौहर के साथ दिल्ली की ओर भागी।

यहा पर इतना और समझ लेना चाहिए कि मदनमोहन का आना और उनका महल मे जाना तो मीरजाफर को मदनमोहन ही के कहने से मालूम हुआ था, जिसके लिये उन्होंने उन (मदनमोहन) के भागने के लिये घोड़ो का प्रबन्ध कर दिया था, पर मदनमोहन किसकी सहायता से महल मे गए और किसकी मदद से मीरजाफ़र के पास उन्होंने पत्र भेजा यह मीरजाफर को न मालूम हुआ। नही तो नगीनाबेगम के भागने या सैय्यदअहमद के छुटने में बड़ी बाधा पडती और मीरजाफ़र कदापि सैय्यदअहमद को कैद से

छुटकारा न मिलने देता। यहा पर इतना और भी समझ लेना चाहिए कि रगपुर में मदनमोहन आदि पांवप्यादे ही मुर्शिदाबाद आए थे।


  1. 'हृदयहारिणी' उपन्यास देखो।