लगते ही मसनद पर लबा होकर बेहोश होगया! तब मदनमोहन ने एक कागज पर कुछ लिखकर उसकी मसनद पर उस परचे को डाल दिया और उसके पैर के बंधन को खोल, वे भी उस सुरंग में चले गए, जहां पर लवंगलता, उसकी परिनिता ली और मदनमोहन के सब साथी ठहरे हुए थे।
निदान, फिर वह स्त्री मदनमोहन आदि सभों को लिये हुई उसी भांति उस झाड़ी में पहुंची, जिस तरह कि वह उन लोगो को झाड़ी मेसे महल में लेगई थी। झाड़ी में पहुंचने पर उसने लवंगलता को गले से लगा रोकर कहा,—" प्यारी राजकुमारी! यह कब मुमकिन है कि मैं फिर भी आपका दीदार देखूगी। मगर खैर, मुझे याद रखियेगा।"
लवंगलता भी रोने लगी और बोली, बीबी नगीनावेगम! यह आप क्या कहने लगीं! आपने जो कुछ भलाई मेरे साथ की है, उसे जीते जी मैं कभी भूल सकती हूं? अगर आप खुद मुझसे न मिलती, या हर तरह से मेरी मदद पर आमादा न हो जाती तो यह गैरमुमकिन था कि मैं उस कैदखाने से छूट अपने-बेगाने से मिल सकती! हां आख़िर मेरा नतीजा यही होता कि इज्जत-आबरू बचाने के लिये मै अपनी जान दे डालती। इसलिये आपके एहसान के बोझ से मैं कभी सिर नहीं उठा सकंगी। और सुनिए, गो, के शौहर सैय्यद अहमद ने मेरे भाई के साथ बहुत बुरा सलूक किया है, मगर फिर भी मैं इस बात का वादा करती हूं कि अगर आप अपने शौहर को अपने भाई की कैद से छुड़ाकर कही सरन चाहें, तो मुझे हर्गिज न भूलिएगा। याद रखिए कि आपको गले लगाने के लिये मेरी दोनो बाहे हमेशः उठी रहेगी। मैं उम्मीद करती हूं कि मेरे भाई आपके शौहर को सारी नालायकी भूलकर आपको और आपके शौहर को जरूर पनाह देगे, इसका जिम्मा मैं लेतो हूं।"
लवंगलता की उदारता से सिराजुद्दौला की दुःखिनी और सती बहिन नगीनाबेगम फूट फूट कर रोने लगी। लवंगलता उससे लपट गई और वह भी खूब रोई। निदान, फिर लवंगलना ने अपने आंचल से उसका आसू पोछकर उसे धीरज धराया। इसके बाद नगीना बेगम मदनमोहन से सिराजुद्दौला की मुहर लेकर कमद् के सहारे से आप