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[बारहवां
लवङ्गलता।


तू अपनी भलाई चाहता है तो अब इन गुनहगारी के काम मे तौबः कर, घर न वह दिन नजदीक है कि तू चील-कौवो की खुराक बनेगा और बंगाले की हुकूमन विलायती-मौदागरो की जदमबोमी हासिल करेगी।"

बस, इतना कहकर लवंगलता, तथा उनकी परिचिता वही स्त्री कमरे से बाहर उलो सुरगवाली राह से चली गई और मदनमोहन ने फड़ी आवाज़ मे सिराजुदौला से कहा,—

सुन, मिराजुद्दौला' अब इससे जियादह नसीहत मैं तेरी नहीं कर सकता, जैसी कि कुमारी लवंगलता ने तेरी की है। अगर तुझमें कुछ भी इन्सानियत हो तो अव तू सम्हल जा और अपने तई इस जुल्म से बचा। वर न तू आप तो बर्बाद होहीगा, साथ ही अपने पुरखो को कमाई हुई इस रियामत को भी जहन्नुम-रसीदह करता जायगा। खैर, इन बातो से मुझे क्या मतलब है, तेरे जो जी में आवे, सोकर, लेकिन यह ले—

यों कहकर मदनमोहन ने कलम, दावात और काग़ज़ सिरजुद्दौला के सामने सरका दिया फिर उसका हाथ खोल दिया,और कहा,-बस, अब तेरी खैर इसीमे है कि तू हाथ मे कलम पकड़ और जो मैं कहता हूँ, उसे इस काग़ज़ पर लिख, और अपने हाथ की यह मुहर उतार कर मेरे हवाले कर।"

पाठक! यह एक ऐसी आकस्मिक घटना थी कि जिसने सिराजुद्दौला के बिलकुल होशा-हवास उड़ा दिए थे! वह मारे भय के इतना बदहवास होगया था कि उसके मुंह से एक अक्षर भी न निकला और चुपनाप उसने कलम पकड़ ली।

उमके कलम पकड़नेही मदनमाहन ने उमसे कागज पर यों लिखवाया कि,—" इस औरत को, जिसका नाम लवगलता है, कोई शख्सहर्गिज न रोके और न इसके साथियो से ही कोई छेडछाड़ करे, वर न उसके धड़ पर सर कायम न रहेगा।"

निदान, सिराजुद्दौला ने बिना कुछ ची चपड़ किए, जो कुछ मदनमोहन ने कहा, लिख दिया और अपनी अगुली मे से उतार कर मुहर उनके हवाले की! मदनमोहन ने उस पुरजे और मुहर को अपने जेब में रक्खा और दूसरे जेब मे से एक कुमकुमा निकाल कर इस ज़ोर से सिराजुद्दौला को नाक पर मारा कि वह उसके