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[ग्यारहवां
लवङ्गलता।


कलद लगाई थी, उसके पास पहुंच कर कहा,—"कितनी गिनती हुई?"

यह सुनकर उस स्त्री ने कहा,—"पूरे पञ्चासी!"

पुरूष—"ठीक है, क्षमा कीजिएगा। यहां इतना अधेरा है कि अपने पराए का पहचानना एक दम असंभव है, इसीलिये इस संकेत को स्थिर किया था।"

स्त्री—"जी हा, ऐसा तो करना ही चाहिए,—मगर खैर, अब आप मेरे साथ आइए।"

यो कहकर वह स्त्री बडी फुर्ती से कमंद के सहारे से ऊपर चढ़ गई और उसके चढ़ जाने पर अपने साथियों को कुछ समझा बुझा कर वह व्यक्ति भी कमद पकड़ कर उस स्त्री के चढ़ जाने के बाद चढ़ गया, जिसके साथ कि उस स्त्री की अभी कुछ बात चीत हुई थी!

बात की बात में वे दोनों—वह स्त्री और पुरुष,—हीराझील के अन्दर पहुंच गए, और फिर वह स्त्री उस पुरुष को इधर उधर घुमाती फिराती, हेर फेर के रास्तो का चक्कर लगाती हुई एक मसजिद मे ले गई, जहापर बड़ा अधेरा था! वहां जाकर उसने मसजिद के बीचोबीच के एक पत्थर को हटाकर राह पैदा की और वे दोनो उसमे, जो वास्तव मे एक मुरग थी, घुस गए! फिर उस स्त्री ने उस सुरग के मुहाने को बद कर लिया और तब मोमवत्ती जलाकर वे दोनो एक तग रास्ते से पहिले तो बराबर नीचे ढाल पर उतरते गए, परन्तु फिर ऊपर चढ़ाब पर चढन लगे! सी प्रकार पाच सौ कदम चलने पर वे दोनो एक कोठरी में घुसे, जहां पर एक सीढ़ियो का सिलसिला ऊपर की ओर गया था!

वहां पर वह स्त्री उस पुरुष को ठहराकर अकेली ऊपर चढ़ गई और आध घटे के बाद लौट आई। फिर वह उस पुरुष कोभी ऊपर ले गई! वहांसे उस पुरुष ने जिस कमरे मे प्रवेश किया, उसी कमरे मे कुमारी लवगलता दो तीन सप्ताह से कैद थी!

कमरे मे उस पुरुष के पैर धरते ही लवंगलता दौड़कर उसके गले से जा लपटी और दोनों देर तक बिना कुछ कहे सुने आंसू ढलकाते रहे! क्या पाठको को यहां पर यह भी बतलाना होगा कि यह पुरुष कुमार