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[दसवां
लवङ्गलता।


पकड़ लानेवालो से तो भरपूर बदलाले ही लिया, पर अब देले कि वह सिराजुद्दौला के साथ किस तरह पेश आती है!

बीस यवन-कुल्लाङ्गारो के वध करा डालने के कारण कदाचित कोई लवंगलता का बजदया कि वा हत्यारी नारी समझते होगे, किन्तु सच तो यह है कि उन नजीर आदि बील यवनो के मारे जाने से लवंगलता मन ही मन बहुत ही दुखी हुई थी, पर वह लाचार थी, क्यो कि वह उस अनाथिनी स्त्री की सलाह के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकती थी। इसलिये कि उन सब अताइयो को लवङ्ग ने उसी अनाथिनी स्त्री के बहुत आग्रह करने से ही मरवा डाला था, जिसका कारण आगे चल कर आपही प्रगट होजायगा। अस्तु।

दूसरो रात्रि को अपनी प्रतिज्ञा के अनुगार वह अनाथिनी स्त्री लवंगलता से फिर मिली और उन दोनो में घंटों तक बाते होती रही। योही तीन चार मुलाकात होने पर एक दिन वह अनाथिनो स्त्री लवगलता को अपने साथ कही ले गई और एक पहर के बाद लवग को उसी लमरे में पहुंचा कर वह लौट गई।

इसी प्रकार पंद्रह दिन बीत गए। दिन भर लवंगलता अपने कमरे में अकेली बैठी बैठी रोया करती, सभा को प्रतिदिन सिराजुद्दौला उसमे मिलने के लिये आता और घटे भर बैठ कर चला जाता, और उसके जाने के बाद वही अनाथिनी स्त्री आती, जिसके साथ लबग खूब घुट घुट कर घंटो बाते किया करती थो! तो फिर वह सोतो करती थीं। इसका सीधासादा यही जवाब है कि जब उसे छुट्टी मिलती!