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परिच्छेद]
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आदर्शवाला।



पाठको को समझना चाहिए कि मोहनलाल नाम का एक साधारण व्यक्ति नव्याव अलीवर्दीख़ा के वानर में एक सामान्य मुन्शीगीरी का काम करता और दुःख से अपना दिन काटता था। उसी दफ्तर मेकादिग्दुलेन नाम का एक मुसलमान भी काम करता था। उसके साथ मोहनलाल की बड़ी गहरी मित्रता थी। सयोग से कादिर की जोरू एक डेढ़ बरस की लड़की छोड़कर मर गई और उसके दूसरे साल कादिर भी चल बसा। सो, मरते समय उसने अपनी लड़को अपने सञ्चे मित्र मोहनलाल को देदी और यह कह दिया कि,— आजसे यह तुम्हारी लड़की हुई, अब तुम्हे अख्तियार है, जिस तरह चाही इसकी पर्वरिश करना।' सो, जब वह लडकी बड़ी हुई और उसके स्वर्गीय नौदर्य को सिराजुद्दौला ने देखा तो चट उले अपनी प्रधान बेगम बना लिया और मोहनलाल को प्रधान दोवान का पद दिया। उसी यवनकन्या लुत्फ़उन्निसा पर लवगलता ने यह कटाक्ष किया था! उसकी बात सुनकर सिराजुद्दौला ने मारे लज्जा के पहिले तो सिर झुका लिया, पर कहा है कि,—' कामातुराणां न भयं न लजा, ' अतएव उसने फिर सिर ऊचा कर और लवंगलता की ओर देख हंसकर कहा,—

"प्यारी! इन बातो को जाने दी। गो, मैलुत्फउन्निसा से बहुत से वादे कर चुका हूं, लेकिन आज मै कुरान छू कर कसम खाता हूं कि तू मेरी कुल बेगमों की सरताज बनकर रहेगी और अब ता. कयामत मै तेरे सिवा दूसरी औरत का मुंह न देखूगा।"

लवंग॰—खैर, यह तो एक बात हुई, अन दूसरी बात का जबाब दीजिए कि मेरे यहां पर लाने के बारे मे नज़ीरखां ने आपसे क्या कहा है?"

सिरानु॰ फकन यही कि,—'ऐश्नर वह एक बुढी का स्वांग बन तस्वीर बेचने के बहाने से तेरे महल में गया था, मगर उस वक्त तूने मेरी तस्वीर की निहायत बेइज्जती की और तेरी एक लौंडी ने उसे मारकर महल के बाहर निकाल दिया। तब वह मेरे ख़त को तेरी ड्योढ़ी पर गिराता हुमा अपने देरे पर चला आया और रात के वक्त कई आदमियों के साथ महल मे सुरह और तुझे बेहोश करके उठा लाया।' इसके अलावे और तो उसने कुछ भी नही बयान किया!