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[नवां
लवङ्गलता।


तुमसे कुछ भी ढील नहीं हुई। यदि तुम रात को उस जंगल में न टिक कर बराबर आगे बढ़ते ही चले जाते तो सभव था कि तुम उन निशानो को, जिनके सहारे तुम मुर्शिदाबाद तक गए थे, न देख सकते और भटककर किसी दूसरी ही राह पर चल पड़ते; और यह कंगन तुम्हें रात के समय क्योकर मिलता, जो कुमारी की सञ्चो स्थिति का पूरा पूरा समाचार बतला रहा है! इसलिये तुम अपने चित्त मे कुछ खेद न करो और अब यह कहो कि मुर्शिदाबाद में जाकर तुमने और क्या समाचार पाया?"

शेरासह, जिन्हें हमारे पाठक जानते होंगे, कहने लगे,—

"श्रीमान्! मुर्शिदाबाद पहुंच और एक भिखमंगे का रूप बनकर मैं घूमता हुआ रात के समय हीराझील' नामक नव्वाब के महल के इर्दगिर्द घूमने लगा। वहीं पर मैंने यह समाचार पाया कि,— 'अभी थोड़ी देर पहिले कोई औरत नव्वाब के महल में पहुंचाई गई है, और उस औरत को पकड़ ले आने वाला नज़ीर ख़ां नामका कोई सार है।' इतना समाचार पाते ही मैं सझम गया कि यह औरत और श्रीमती कुमारोजी कोई दो नही, गरन एक ही है; क्योकि कुमारीजी ने अपने पुरजे मे भी नजीरखां का नाम लिखा है। निदान, फिर मैंने वहां पर ठहरना उचित न समझा और धावा मारता हुआ, अपने साथियो के साथ चल पडा। अब श्रीमान् जो आज्ञा दे, सेवक प्राण रहते उसके करने से पीछे न हटेगा।"

शेर.सह की बाते सुनकर मदनमोहन और माधवसिंह ने पहिले आपस मे कुछ सलाह की, फिर अपना अभिप्राय उन्होने शेरसिह पर प्रगट किया. जिसे शेर सह ने भी पसंद किया।

निदान, फिर तो मदनमोहन, शेरसिंह तथा और दसबारह चुने हुए बहादुरों के साथ रात के समय चुपचाप मुर्शिदाबाद की ओर रवाने हुए और उनके उस ओर जाने के वृत्तान्त को मत्री माधवांसह ने मत्र की भांति गुप्त रक्खा, तथा और भी जिस्म प्रबन्ध के करने को सलाह उन्होने मदनमोहन के साथ की थी, उसके करने मे वे दत्तचित्त हुए। यह कौनसा प्रबन्धथा? इसका हाल समय पर आप मालूम हो जायगा।