यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
[नवांश
लवङ्गलता।


हुए। मंत्री माधवसिंह ने बहुत कुछ ऊंच नीच और नव्वाब के बलायल को समझाकर किसी किसी भांति मदनमोहन को शान्त किया।

इतने ही में काशी से नरेन्द्रसिंह का भेजा हुआ एक प्यादा आ पहुंचा। उसने आकर सलाम किया और एक चिट्ठी मंत्री माधवसिंह के आगे रख दी। तुरन्त वह चिट्ठी पढ़ी गई, परन्तु उसमें बड़ा भयानक समाचार था, जिसने माधवसिह और मदनमोहन को शोकसागर में डुबा दिया और जब बह समाचार राजमंदिर में प्रगट हुआ तो यडा हाहाकार मच गया।

बात यह थी कि नरेन्द्रसिंह ने अपने पूज्य पिताके बैकुंठ पधारने को समाचार लिखा था। यही कारण था कि राजभवन में बड़ा शोक छा गया। उस पत्र मे नरेन्द्रसिंह ने यह भी लिखा था कि,- "पिता का श्राद्ध करके चित्त शान्त करने के लिये हम श्रीवृन्दाबन जाते हैं।

ऐसी अवस्था में, जब कि कुमारी लवंगलता के गायब होने से सारा राजमन्दिर शोकसागर में डूबा हुआ था, बूढ़े महाराज महेंद्रसिंह के बैकुण्ठ पधारने का समाचार सुनकर लोगों का शोक सौगुना बढ़ गया।

निदान, वे सवार, जो कुमारी की खोज के लिये चारों ओर दौड़ाए गए थे, दूसरे दिन लौट आए, परन्तु किसीने भीलवंगलता का पता नहीं पाया था। उन सवारो मे से केवल पांच सबार, जिनके साय सिपहसालार शेरसिह थे, अभी तक नहीं लौटे थे और उनके लौटने तक उन कार्रवाइयो के करने के बिसार को माधव सह और मदनमोहन ने मन ही मन में रोक रक्खा था, जिन्हें वे किया चाहते थे।

सातवें दिन चारो सवारों के साथ शेरसिंह लौट आए औरक्ष उन्होंने अकेले मे माधवसिंह और मदनमोहन को ले जाकर पहिले तो एक कगन को, जिसमे एक पुरजा लपेटा हुआ था, उन दोनों के आगे रख दिया और फिर यो कहा,—

"श्रीमान् की आज्ञा पाकर मैं चार सबारों के साथ उस बीहड़ और जंगली रास्ते से चला, जो कुछ फेर खाकर मुर्शिदाबाद को गया है। मैंने यह बात भलीभांति मन मे समझ रक्खी थी कि वे