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[आठवां
लवङ्गलता।


देर न कर, फ़ौरन आकर मेरे सीने से लग और इस वीराने को आबाद कर।

"प्यारी! मैं इतनी खुशामद तेरी इसीलिये कर रहा हूं कि जिसमे तू मुझे आसानी से दस्तयाब हो।"

इस पत्र के नीचे किसी का हस्ताक्षर मांगा।

आठवां परिच्छेद.
कुटिल कर्म।

"अतिमलिने कर्त्तव्ये भवति खलानामतीव निपुणा धीः।
तिमिरे हि कौशिकाना रूप प्रतिपद्यते दृष्टिः॥"

(सुभाषितम्)

मावास्या की अन्धकारमयी रजनी है, पानी खूब ज़ोर से बरस रहा है, बादल के गरजने और बिजली के कड़कने से प्रलय होने का सा भय होरहा है और मारा संसार प्रकृति देवी के इस भयानक गोद मे पड़ा पडा सोया जागा सा, और जागा सोया सा, होरहा है! ऐसे समय मे दस बारह आदमी हर्वे हथियारो से लैस और अपने अपने चेहरे पर जालदार नकाब डाले हुए रगपुर के महाराज के अन्तः पुरवर्ती उसी उद्यान में एक धने पेड़ के नीचे खडे खड़े आपस में धीरे धीरे कुछ बात चीत कर रहे है, जिस उद्यान मे कुमारी लवंगलता के साथ मदनमोहन का प्रथम प्रथम प्रेमालाप हुआ था।

ये सब लोग, जो एक पेड के नीचे खड़े खड़े आपस मे बाते कर रहे है, निश्चय है कि चोरो की तरह बाग की दीवार लांघ कर भीतर आए होगे और इन समो की नीयत अच्छी न होगी। अस्तु, देखिए कि ये सब, अब यहांसे कहा जाते है और क्या करते है !!!

निदान, वे सब के सब आपस मे कुछ घात चीत करके उस ओर बढ़े, जिधर से अन्तःपुर मे जाने के लिये राह थी। वे सब बेखटके और बिना रोक टोक, अन्तःपुर मे घुसे और पहरेवालियों