यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद]
४३
आदर्शवाला।


नाक पर आशिक हुई हूं, इसलिये चाकू से छीलकर इसकी नाक ठीक कर रही हू, क्योकि यह नाक सुवे के ठोर की तरह ज़रा ज़िया-दह लबो है!"

लवग का यह रग देख बुढ़िया के होश उड़ गए और मारे क्रोध के वह थरथर कांपने लगी!

कुन्दन ने ठहाका लगाकर कहा,—वाह! बीबी रानी! यह तो आपने बड़ा तमाशा किया!' मैंने रामायण में पढ़ा है कि भगवान् लक्ष्मणजी ने सूर्पनखा की नाक काटी थी, पर आप तो नव्वाब सिराजुद्दौला को ही नाक पर सफ़ाई का हाथ फेरने लगी!"

इतना सुनते ही बुढ़िया आगबगूला होगई और चट उसने अपनी सब तस्वीरे वाध बूंध, बकुचा वगल मे दबा, उठते उठते कहा,—

"है! गीदड होकर शेर के साथ दिल्लगी! तुम सभी की मौत दामनगीर हुई है, तब तो नव्वाब की तस्वीर के साथ तूने (लवंग की ओर देखकर) यह गुस्ताकी की! खयाल रख कि बहुत जल्द तू अपनी इस शरारत की सज़ा पाएगी और नव्वाब की कनीज़ो का हुक्का भरेगी।"

यह सुनते ही कुन्दन ने ऐसा तमाचा मारा कि बुढ़िया फर्श पर लंबी होगई, पर लवग ने उठकर कुन्दन को दूर किया और बुढ़िया को उठाकर कहा,—जा, बुड्ढी! बस, चुपचाप राजमंदिर के बाहर निकल जा। काम तो तूने ऐसा किया है कि तेरा काला मुंह करके निकलवाती. पर नहीं; जा! तू यहांसे अपना काला मुंह कर! कुटनी न जाने कहां की!!!"

रंग बदरग देख, बुढ़िया उठी और अपना बकुचा बगल में दबा कर जल्दी जल्दी वहांसे भागी। उसके पीछे पीछे कुन्दन भी गई और उसने भर पेट गरिया कर बुढ़िया को फाटक के बाहर निकाल दिया।

बुढ़िया के जाने के पाव घटे बाद मदनमोहनउस कमरे में पहुंचे, जिसमे लवंगलता अकेली बैठी हुई सिराजुद्दौला की तस्वीर की काट छाट कर रही थी। उसने मदनमोहन को अपने कमरे में देख, लज्जा से सिमटकर कहा,—

"कदाचित् आप यह देखने के लिये यहां आए होंगे, कि इस समय मै यहां पर अकेली बैठी हुई क्या कर रही हूँ?"