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[छठवां
लवङ्गलता


करता है उसी पर यदि घर की रखवाली का भार देदिया जाय तो उसका क्या नतीजा होगा?"

मदन॰—'ओ' तो क्या आप मुझ पर इस हार की चोरी का दोष लगाती है, जो कि मैं खुद आपको दे रहा हूं?"

लवंग॰—'इमे तो आप खुद समझ सकते है। क्योकि यदि आपका जी साफ होता तो आपको न गे में यह हार क्यो गडता सुदरी' यदि मेरी इन्द्रा इस हार के गपक जाने की होती तो मैं आपको देने हो क्यो आता

लवग॰—"इसलिये कि इस तुच्छ हार को देकर विश्वास जमाना और फिर किसी गहरी रकम पर हाथ मारना!!!"

मदन॰—"सच है! आपके इस कहने से मुझे एक पुरानी कहानी याद आई!"

लवंग॰—,"कैसी?"

मदन॰,—"किसी चोर ने एक साहूकार का कुछ माल चुराया था, किन्तु जब उल माहुकार में उप चोर या गमना हुआ तो वह चोर अपने जी मे यह समझ कर कि कही या मुझे नाग का इलजाम न लग वे' चोट उस बेचारे लादकार का अपनी किमी चीज़ के बुगने का दोष लगाने लग गया।"

लवग॰—"ऐसी बात है। भला! कृपा कर बतलाइए तो सही कि जैसे आपके हाथ में मेरा हार है, वैसे ही मेरे पास आपका क्या है?

मदन॰—"मानिक! जिसे आपने अपने कब्जे में कर लिया है!

इतना सुनते ही लवंगलता के चेहरे पर सुर्खी छा गई और वह पीठ फेरे रहने पर भी जमीन की ओर निहारने लगी। उसके म भाव को मदनमोहन ने उसके मुख डे के देखे बिना ही समझ लिया और यो कहा—'क्यो सुन्दरी! चोगी साबित होने पर चोर के चेहरे पर जैमी हवाइयां उड़ने लगती है,वैमोरगत इस समय किस के मुखड़े पर दिखलाई देने लगी है?"

लवग॰,—'लाइए कृपाकर मेरा हार दीजिए!"

मदन॰—"अब तो यह हार तभी मिलेगा, जब कि आप मेरे खोए हुए मानिक को, जो कि आपकी मुट्ठी में है, मेरे हवाले