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परिच्छेद]
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आदर्शवाला।



लवंग॰,—"आपको यह समझना चाहिए था कि यह उद्यान अन्तःपुर से सम्बन्ध रखता है, इसलिये यहाँ पर अन्तःपुर की नारियों के अलावे और किसीको आने का अधिकार नहीं है।"

मदन॰,—"क्या, भैया नरेन्द्र भी ऐसा दो समझते?"

लवग॰,—"उन्हे ऐसा समझने की क्या आवश्यकता है? उनका तो यह हई है!"

मदन॰,—"तो आपको यो कहना चाहिये था कि,—'यहां पर किसी गैर शख्स को आने का हुक्म नहीं है!'अच्छा, इस हार को तो आप लीजिए। अबसे मैं यहा पर यदि कभी आना चाहूंगा, तो आपसे हुक्म ले लूंगा"

लवंग॰,-"दूसरे-बड़े उद्यान के रहते भी क्या फिर भी आपको यहां आने का प्रयोजन होगा?"

मदन॰,—"क्यों नहीं! जबकि मुझे अपना घर छोड़कर यहां रहने की आवश्यकता पड़ी तो जब कमी बड़े उद्यान से जी घबरा जायगा तो यहां पर मैं अवश्य आऊंगा!"

लवंग॰,—"और यदि मैं आपको यहां न आने दूं, तो?"

मदन॰,—"तब मैं बलपूर्वक यहां आऊंगा।"

लवग॰,—"ऐसा साहस किस लिये?"

मदन॰,—"इसलिये कि मेरे मिनः या आपके भाई ने आपकी रखवाली का सारा भार मुझ पर डाल दिया है, इसलिये अब मुझे यह अधिकार है कि आप जिस समय, जहां पर हो, वहां मैं पहुंचूं और यह बात अपनी आंखों से देखूँ। "कि आप कहां पर है, या क्या करती है!"

लवंग॰,—'यह तो भैया ने वही बात की कि—"

मदन॰,—"कहिये,—कहते कहते रुक क्यो गई?"

लवग॰,—"खेत के. अगोरने का भार पखेरू को दिया!!"

मदन॰,—"यह आप क्या कह गईं? कुछ समझ मे न आया!!"

लवंग॰,—"जी हा। कुछ समझ मे न आया। जब कि आपकी ऐसी समझ है तो फिर आप मेरी रखवाली किम समझ के भरोसे से करेंगे?

मदन॰,—आखिर, आपका अभिप्राय क्या है?

लवंग॰,—"यही कि जो शख़्स चुपचाप घर में घुसकर चोरी