इसलिये उसने सैय्यद अहमद को वैसा करने का अवसर ही न दिया और वह चित्र खानातलाशी लेने पर नव्वाब के हाथ आप ही लग गया।
निदान, सिराजुद्दौला ने पत्र लिखकर पूरा किया और उसे अपने खुशामद-परम्त मुसाहब नजीरखा को दिखलाया। नज़ीर ने उस पत्र की लिखावट को खब ही सराहा और वह पत्र एक ख़ास (शाही) चिट्ठीरसा के हाथ नरेन्द्र के पास भेजा गया।
फिन्तु उस पत्र मे क्या लिखा था, या उसका क्या नतीजा निकला, अथवा नरेन्द्र सिंह ने उसका क्या जबाव दिया, इसका पूरा पूरा हाल जानना हो तो पाठको कोचाहिए कि "हृदयहारिणी" उपन्यास के छठवे परिच्छेद को देखें। उसमे सिराजुद्दौला का वह घृणित पत्र और उसका मुंहतोड़ जवाब छपा है।
हां, यहां पर हम इतना अवश्य कह देगे कि जब सिराजुद्दौलाने अपने पत्र का उचित उत्तर पाया तो उसके क्रोध की सीमा न रही और उसने उसी समय नजीरडा को हुक्म दिया कि,-"जैसे हो सके, एक महीने के अन्दर लवंगलता को लाकर हाज़िर करे।"
इस हुक्म को नजीरखा ने मिरमाथे पर चढ़ाया, क्यो कि इस काम के पूरे करने की तो वह पहिले ही कसम खा चुका था। पर अब यह देखना है कि वह अपना काम किस हग से साधता है!!
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छठवां परिच्छेद,
हार।
तन्वङ्ग्याः स्तनयुग्मेन मुखं न प्रकटीकृतम्।
हाराय गुणिने स्थानं न दत्तमिति लजया॥"
(सुभाषितम्)
दिनाजपुर के राजकुमार जिनकी अवस्था बीस-बाईस चरस के लगभग थी और जिनका नाम मदनमोहन था, रगपुर के युवराज नरेन्द्रसिंह के अत्यन्त प्रियमित्र और इसीलिये वे प्रायः अपने मित्र के यहां आया