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परिच्छेद
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आदर्शवाला।

हैरान है।"

नज़ीर—"तो हुजूर! अन्देशा किस बात का है? आप विल्फेल नरेन्द्र को एक खत लिख। अगर उसने सीधी तरह से लवंगलता को भेज दिया तो खैर, बर न हुजूर की इजाजत हुई तो ताबेदार बात की बात में जैसे होसकेगा, उस परीपैकर को हुजूर की खिद़मत में ला दाखिल करेगा!"

सिराजुद्दौला,—(खुश होकर) "क्या तुम इस बात का पक्का वादा करते हो?"

नजीर,—"सिर्फ़ वादा हो नहीं, बल्कि इस बात की कसम खाता हूं कि इस काम को मै निहायत उम्दगी के साथ अजाम दूंगा।"

यह सुनकर सिराजुदौला ने कलमदान मे से कलम और काग़ज लेकर एक पत्र लिखना प्रारभ किया।

क्या हमारे पाठको ने कुछ समझा कि ये इतनी बाते किस सुन्दरी के विषय मे हुई। यदि समझा हो तो ठीक ही है, और जो नहीं समझा हो तो हम उसका हाल यहां पर लिखते है,—

कुमार नरेन्द्र सह से मिलता रहने के कारण एक समय सैय्यद अहमद रंगपुर गया था और नरेन्द्र के ख़ास कमरे में उस राजघराने के सभी स्त्री-पुरुषो के जो चित्र लगे थे, उनमे से नरेन्द्र की बहिन कुमारी लवंगलता के अद्विताय चित्र पर मुग्ध हो, वह (सैय्यद अहमद) उस चित्र को वहांसे चुपचाप उड़ा लाया था, जिसकी नरेन्द्र को कुछ भी ख़बर न थी। उस चित्र के पीछे सैय्यद अहमद ने फ़ारसी अक्षरो मे यह लिख दिया था,—

कुमारी लवङ्गलता,
हमशीरा राजकुमार नरेन्द्रसिंह, रंगपुर।"

इसीसे उस चित्र मे लिखिन सुन्दरी का सच्चा पत्ता सिराजुद्दौला को लग गया था और वह उस चित्रित सुन्दरी पर हजार जान से आशिक होगया था। यद्यपि इस चित्र को सैय्यद अहमद इसी इच्छा से उठा लाया था कि,—अवसर पड़ने पर इस चित्र में लिखी सुन्दरी ता नव्वाब के हवाले करे और आप कुसुमकुमारी पर घात लगावे, किन्तु ईश्वर को तो कुछ और ही करना था,