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परिच्छेद]
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आदर्शवाला।

नेस्त नाबूद करना चाहिए!

यह बात मन ही मन सोचकर मीरजाफ़र ने किसी ढब से सैय्यद अहमद के घर से वह संदुक उठवा मंगाया, जिसमे सैय्यद अहमद पोशीदः काग़ज़ात रखता था। मीरजाफ़र को यह वात भली भांति मालूम थी कि,—'सैय्यद अहमद के साथ नरेन्द्रसिह की निहायत दोस्ती थी, इसलिये मुमकिन है कि कोई ऐसा काग़ज़ भी हाथ आवे, जो सैय्यद को मिट्टी में मिला देने के वास्ते काफ़ी हो!'

निदान, ऐसा ही हुआ और उस संदूक में से नरेन्द्र की लिखी हुई सैंकड़ों चिट्ठियां निकलीं, जो उन्होने सैय्यद अहमद को लिखी थीं। वे चिट्ठिया यदि मीरजाफ़र के अलावे किसी दूसरे व्यक्ति के हाथ लगतीं तो संभव था कि मीरजाफ़र के स्वार्थ मे बहुत कुछ हानि पहुंचाती; इसलिये उन चिट्ठियो मे से दो चार मामूली चिट्ठी को रख कर, जिनसे नरेन्द्र के साथ सैय्यद अहमद की मित्रता का भली भांति परिचय मिलता था, बाकी सब चिट्टियो कोमीरजाफ़र ने जला डाला। उसी संदूक मे एक चिट्ठी सैय्यद अहमद के हाथ की लिखी हुई भी मिली, जो उसने नरेन्द्रसिंह के नाम लिखी थी; पर उसे कदाचित वह भेज न सका था। उस चिट्ठी से नरेन्द्र के साथ उसकी पूरी मित्रता,और अपने बहनोई सिराजुद्दौला के साथ विरुद्धता करने का पूरा प्रमाण मिलता था।

निदान, चतुरशिरोमणि मीरजाफ़र ने अपने स्वार्थ को बचाए रखने की इच्छा से नवाब को उन कई चिट्ठियो को दिखलाकर सैय्यद अहमद के विरुद्ध खूब भरा और इस बात को भी समझाकर कह दिया कि, अमीचद ने अपने ऊपर बीता हुआ जो कुछ हाल हुजूर से कहा है, सैय्यद अहमद उन्हें ऐसा कहने से रोकने के लिये ही हीराझील के अन्दर आया था!' इसके अलावे मीरजाफ़र ने फ़तहख़ां से भी बातो ही बातो मे यह बात भी जानली थी कि,—'सैय्यद अहमद नरेन्द्र से रास्ते मे बाते कर रहा था, और सबारो को धावा मारते हुए आते देख, नरेन्द्र चल दिया था, और इस तरह नरेन्द्र के भाग जाने के बारे मे सैय्यद अहमद कोई माकूल उज नहीं बतला सका था।

निदान, इन सब बातों, और सैय्यद अहमद की चीठियों से मीर-