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२०
[तीसरा
लवङ्गलता।


मीरन.—"मगर, जनाब! मुआफ कीजिएगा, कुमार नरेन्द्रसिंह की गिरफ्तारी का हुक्म ऐसे पोशीदः तौर से फतहखा को दिया गया था कि जिसकी ख़बर चद दरबारी लोगो के अलाबे और किसीको भी नहीं होने पाई थी, फिर नरेन्द्रसिह को वह हाल क्योंकर मालूम होगया, कि वह सर्कारी सवारों की आहट पाते ही नौ-दो-ग्यारह होगया!"

सैय्यद अहमद,—"ओफ़! इस बात का ताज्जुन तो मुझे भी है कि यह ख़बर उसे क्योंकर मालूम हुई!"

मीरन,—"बस. इसीसे तो आप पर शक होता है कि आपने अमीचंद से पहिले नरेन्द्र की सिफारिश की, पर जब उससे कोरा जवाब पाया तो चट जाकर अपने दोस्त नरेन्द्र सिंह को आगाह कर भगा दिया! यही वजह है कि नव्वाब साहब आप पर नाखुश रहने पर भी इस हर्कत से और भी निहायत नाराज़ हुए हैं और आप सर्कारी बाग़ी तसौवर किए गए है!"

इस बात को सुनकर सैय्यद अहमद को क्रोध चढ़ आया और उसने झंझलाकर कहा, वे झख मारते है जो मेरे ऊपर ऐसा शक करते या ऐसा झूठा इलज़ाम लगाते हैं! भला, मुझसे और नरेन्द्र से क्या ताल्लुक है कि मैं उसकी मदद करता और नव्वाब को और भी अपना दुश्मन बना लेता?

मीरन,—"क्या इसे भी एक पेचीदः चाल समझना नामुनासिब होगा?"

सैय्यद अहमद,—(क्रोध से भभककर) "तू झूठा है! बस, घलाजा यहांसे। उस काफ़िर नरेन्द्र के साथ मेरी कब की दोस्ती थी, जो यों झूठा इलज़ाम लगा कर तू मुझे नाहक बदनाम करता है? नामाकूल! सूवर!

मीरन, सैय्यद साहब! आप नाहक मुझे गालियां देते है। सुनिए, आपके साथ नरेन्द्र की कैसी गहरी दोस्ती थी, इसका पूरा पूरा सुबूत नव्वाब साहब के हाथ लगचुका है! खुदारा, आप अपने बचाव की कोशिश कीजिए; इसी बात की ख़बर देने मैं इस वक्त मापके पास आया था, वर न आपके साथ मेरी कोई दुश्मनीन थी।

इतना सुनते ही सैय्यद बावला मा हो, मीरन के मारने के लिये