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परिच्छेद]
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आदर्शवाला।


भी खातमा होगया होता और आपका दर्बार भी खुलगया होता मगर बड़े अफ़सोस की बात है कि आपके ख़िलाफ़ ही कुल बातें होर ही हैं! आपके ख़िलाफ़ एक यह भी बात सुनाई दी है—यानी किसीने नव्वाब साहब के कानो तलक यह भी ख़बर पहुंचाई है कि,—'बाग़ो के बेदाग निकल भागने मे आपने मदद पहुंचाई है!' इस बात ने नवाब साहब के पुराने गुस्से की और भी ताज़ा कर दिया है!"

इस बात ने सैय्यद अहमद के रहे-सहे होशो-हवास बिल्कुल खो दिए और उसने घबराकर कहा,—"खुदा के वास्ते सच कहिएगा, क्या यह झूठी ख़बर नव्याब साहब के कानो तलक बेईमान फ़तहख़ां ने पहुंचाई है?"

मीरन,—"इस बात को मुझे कुछ भी ख़बर नही, मगर क्या इस बात से आप इन्कार कर सकते है कि उस वक्त आप उस मुकाम पर मौजूद न थे, जहां पर भागने के वक्त घुडचढ़े नरेन्द्र सिह के साथ आपकी कुछ बातचीत हुई थी और नवाब साहबके सवारों को आते हुए देख, आपके हाथ का इशारा पाकर वे भाग गए थे!"

सैयद अहमद,—"बेशक, मैं इस बात से इन्कार नहीं करता कि मैं उस वक्त वहां पर मौजूद था, मगर मैं नरेन्द्र के फसाने की नीयत से वहां गया था, कुछ मैंने उसे भागने में मदद नही पहुंचाई है और न हाथ का इशारा किया है। असल बात यह है कि जब अमीचद के मुह,—जिसे मैने ही नरेन्द्र का हाल सुनाया था, पर उसने, जैसा कि अभी आपने बयान किया, नव्वाब साहब से कुछ और ही कहा था,—नव्वाब साहब ने यह हाल सुना और नरेन्द्र की गिरफ़्तारी का हुक्म फतहख़ा को दिया गया तो यह खबर पाकर मै इस नीयत से नरेन्द्र की फिराक मे घर से निकला कि अगर उस मूजी से मुलाकात होजाय तो उसे तब तलक मैं रोके रहूं, जब तलक कि नव्याब साहब की फौज आकर उसे गिरफ्तार न कर ले, मगर ऐसा न हो सका और वह काफिर, सवारों के रिसाले को दूर ही से आते देख, देखते-देखते नज़रो से गायब हो गया और मै हक्का-बहा सा हो, जहां का तहाँ खड़ा का खडा रह गया।"