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[ तीसरा
लवङ्गलता।


मोरन ध्यान से सैय्यद अहमद की बातो को सुनता और उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव पर पूरी नज़र गड़ाए हुए था। उसने उस पासवाले कुञ्ज की ओर एक नज़र डालकर कहा,-

जनाब! मैं भी शाम के वक्त हवा खाता और टहलता हुआ इधर आ निकला था, पस, जी में आया कि आपसे भी मुलाकात करता चलू!"

सैय्यद अहमद,-"आपने मुझ ग़मज़दे पर बड़ी मिहरबानी की! क्या कहूं, दर्बार से निकाले जाने के सबब मुझे दोस्तों का दीदार भी नसीब नहीं होता। कुछ लोग तो ब-वजह अदमफुर्सती के नहीं मिलते, और चंद लोगो ने नव्वाब साहब की नज़र फिरी हुई समझकर मुझसे मिलना-जुलना तर्क कर दिया है।"

मीरन,-"तो, हजरत! आप मुझे किनमे शुमार करते हैं?"

सैय्यद अहमद,-"आह! मुआफ़ कीजिएगा, मैंने आपके ऊपर कुछ नहीं कहा है, सिर्फ दुनियादार लोगो की खुदगरज़ी पर ही अपने दिल का उबाल निकाला है।"

मीरन,-" साहब! मेरे वालिद तो बराबर इस बात की पैरवी में लगे हुए थे कि,-"जिममे आप फिर दर्बार मे बुलाए जायं और आपकी जानिब से नवाब साहब का दिल साफ़ होजाय।"

इतना कहकर मीरन ने उसके चेहरे पर नज़र गड़ाई और उसने अचरज से पूछा,-'खुदा के वास्ते सच कहिएगा, क्या आपके नेक ख़सलत वालिद साहब मेरी बिहतरी के लिये कोशिश कर

मीरन,-"हज़रत! मुझे आपसे झूठ बोलने या चापलूसी की बाते करने से फाइदा क्या है? पस, जो बात असल थी, अर्ज की गई; मगर अफ़सोस का मुकाम है कि मेरे वालिद साहब ने चंद अर्से में जिस मिहनत के साथ आपकी बिहतरी के लिये इतनी कोशिशे की थीं, उन पर आपने खुद-ब-खुद इतनी मिट्टी डाल दी कि जो शायद ताक़यामत उठाए न उठेगी।" यह एक ऐसी बात थी और इस ढग से कही गईथी कि जिस ने सैय्यद अहमद के दिल को बेतरह मसल डाला और उसने घबरा कर कहा,-" ऐं! क्या फ़र्माया, आपने! मैंने ऐसी कौन सी हर्कत-ई-बेजा की, कि जिससे उस पैरबी को खलल पहुंचा!"