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परिच्छेद ]
१५
आदर्शवाला।


तीसरा परिच्छेद.

खल की क्रूरता।

"सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सर्पात् क्र रतरः खलः।
मन्त्रौषधिवशः सर्पः खलः केन निवार्यते॥"

(हितोपदेशः)

सैय्यद अहमद को पाठक भलीभांति पहिचान गए होगे कि वह सिराजुद्दौला का बहनोई था और फ़ैज़ी रडी के कारण सिराजुद्दौला का कोपभाजन बनकर दर्वार से निकाला हुआ था। इसके अतिरिक्त वह कैसा भयानक मनुष्य था, इस बात का और भी परिचय पाठक इस परिच्छेद मे वर्णित एक घटना से बहुत कुछ पावेगे।

नरेन्द्र सिंह का हाथ से निकल जाना, सैय्यद अहमद के लिये बहुत ही दुखदायी हुआ था, इसलिये अब उसकी घबराहट की सीमा नही थी और वह अपने बाग़ मे इस नीयत से टहल रहा था कि जिसमे जी कुछ ठिकाने हो और कोई ऐसी-नई, पेचीली-चाल निकाली जाय, जिससे नरेन्द्र का खातमा ही हो जाय!

इतने ही मे मीरजाफ़र ख़ां का लड़का, जिसका नाम मीरन था, वहीं पहुंच गया और बोला,-"बदगी, जनाबे-आली!"

सैय्यद अहमद इतना सुनकर चौंक उठाऔर बोला,- 'अख्खा! आप है! बदगी, बदगी! आइए, तशरीफ़ लाइए!

फिर वे दानो बाग के एक चबूतरे पर बैठ गए, जिसके पास एक घना कुंजबन था। तब उन दानोमे इस प्रकार बात चीत होने लगी,-

सैय्यद अहमद ने कहा,- इस वक्त, जब कि शाम होने के साथ ही साथ मेरे दिल के अंदर भी अधेरा फैलने लग गया है, आपके आने से मै निहायत ही खुशहुआ, क्यो कि आपने आकर मुझे इस वक्त उस बला से छुड़ा लिया, जो मुझ जैसे दिलजले को तनहाई मे दिक़ किया करती है।"