की तो नरेन्द्र ने एक विचित्र ढग निकालकर कुसुम से टोपियां बनवानी प्रारंभ की और उसी मिससे उसकी भरपूर सहायता वे करने लगे। (१)
यदि नरेन्द्र कुसुम की कहानी अपने माने हुए दोस्त सैयद अहमद से न कहते, तो कदाचित वह दुष्ट नरेन्द्र पर इतना भयानक वार कभी न करता, किन्तु कुसुम जैसी त्रैलोक्यमोहिनी, राजकुमारी का हाल सुन और चुपके चुपके उसे देख उस कामुक यवन मे धर्मभाव कब ठहर सकता था! निदान, वह मौका ढूंढ ही रहा था कि उसने पहली ठोकर खाई और फ़ैज़ी रडी के कारण वह सिराजुद्दौला की नज़रों से गिरकर दार से निकाला गया; पर फिर भी उसकी पापवासना न दबी और वह नरेन्द्र के घात मे लगा। यदि उसके किए होता तो वह नरेन्द्र को खुद ही मार डालता, पर पापी के छुद्र हृदय मे इनता साहस कहा कि वह एक पुण्यात्मा महावीर का मुकाबला कर सकता! अतएव जब उसने सुना कि,-'सेठ अमीचंद अपनी बर्बादी का हाल नव्वाय से रोने आए है, तो उसने इस अवसर को अपने लिये बहुत ही अच्छा समझा और फिर उसने सेठजी से मिलकर जिस ढंग से उन्हे भरकर नरेन्द्र के विरुद्ध उभाड़ा था, उसका हाल पाठक जानते ही है।
सो, इधर अमीचंद से आग लगा, वह दुष्ट नरेन्द्र की खोज में 'चला, पर उनसे डेरे पर भेट न हुई, क्यो कि वे कुसुम के यहां गए थे। जब वे कुसुम के यहांसे लौटे आ रहे थे, तब बीच राह में उन्हे मीरजाफ़र का एक पुर्जा मिला, जिसमे केवल इतना ही लिखा था,-
जनाब, राजकुमार नरेन्द्रसिंह साहब! आप जिस हालत में जहां पर हो, फ़ौरन अपनी जान लेकर मुर्शिदाबाद से निकल भागिए। किसी दुश्मन ने, जिसका पूरा हाल दर्याफ्त कर मै पीछे से आपको आगाह करूंगा, नव्याब से आपके यहां पर रहने काभेद खोल दिया है और नव्वाब ने आपकी गिरफ्तारी के वास्ते अभी फ़तहख़ां को कड़ा हुक्म दिया है।
आपका दोस्त-मीरजाफ़र"
- ↑ (१) हृदयहारिगी उपन्यास के पहिले परिच्छेद से लेकर पांचवें परिच्छेद तक देखने से यह हाल भली भांति मालूम होजायगा।