है--माफ़ कीजिएगा-कि आपमे दोस्त और दुश्मन की शिनाख्त करने का माद्दा बिल्कुल नहीं है।
अमीचद, " बातो की पहेली न बनाइए और कृपाकर साफ़ साफ़ समझाकर कहिए।"
सैय्यद अहमद,-"सुनिए, वही नरेन्द्र, जिसे आप अपना दोस्त समझते है, जहरीले साप से भी बदतर है। वह अगरेज़ सौदागरो का जासूस बना हुआ खुफ़िया तौर से यहा रहता है और यहां की ख़बरो को अगरेज़ो तक पहुंचाया करता है। इस बात की नव्वाब को मुतलक ख़बर नहीं है। उसी नरेन्द्र-आपके-दोस्त-नहीं नही, दुश्मन नरेन्द्र के यो भड़काने से कि,-'आप अंगरेजो से बगावत किया चाहते है, 'अगरेजो ने आपको यहातक तकलीफ़ पहुंचाई। बस, इसी राज़ को आप पर ज़ाहिर कर देने की नीयत से मैं आपके पास इस वक्त आया था।
पाठक सोच सकते है कि ऐसी बाते सुनकर कौन मनुष्य धैर्य और विवेक को ठीक रख सकता है और क्रोध से भभक नही उठता। यहां भी वही बात हुई कि दुष्ट सैय्यद अहमद का कुटिल मन्त्र सीधे-सादे सेठ अमीचद पर चल गया और वे बड़े क्रुद्ध हो, नरेन्द्र को बुरा-भला कहने लगे और बोले कि, साब पर यह बात प्रगट कर दूंगा कि,-'रगपुर का राजकुमार नरेन्द्र अग्रेज़ सौदागरो का भेदिया बनकर यहा छिपकर रहता और दर्वार के समाचार अग्रेज़ो तक पहुंचाया करता है। 'क्यो, यह ठीक है न?
दुष्ट सैय्यद अहमद तो यह चाहता ही था, किन्तु त्यो चाहता था? यह बात आगे चलकर आपही प्रगट हो जायगी। सो, अमीचद पर अपने मंत्र का प्रभाव चल गया हुआ देखकर वह मन ही मन बहुत ही प्रसन्न हुआ और उन्हे सलाम करके इधर उधर देखता हुआ, वहांसे चल दिया।
दूर ही से एक आदमी लना की ओट से सैय्यद अहमद और अमीचंद को आपस मे बातें करते देख रहा था, सो, जब सैय्यद अहमद चला गया और सेठ अमीचंद भी थोड़ी देर तक वहां और ठहरे रहकर उठे और बाग़ मे आकर टहलने लगे, तब वह आदमी भी, जो लता की ओट मे छिपा था, किसी ओर चलता बना।