पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/८९

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  • शाहीमहलसरा इसके खेलने वालेकी अजीब हालत होजाती है और हर तरफसे फैले हुए दिल को बटोर कर बगौर खेल खेलना पड़ता है। यही वजह थीं कि मेरा दिल उस वक्त इस काबिल न था कि मैं बगौर शतरंज खेल सकता, इसलिये मुझे उम्मीद कामिल थी कि मैं हार जाऊंगा, लेकिन ऐसा न हुआ और एक घंटे के बाद वह बाजी मैंने जीती ! मैंने खेल के वक्त इतना जरूर समझा थाकि मळका मुझसे अच्छा खेलती है, लेकिन फ़िर वह क्यों हारी ! इसी बात पर मैं गौर करने लगा।

मैंने सोचा कि या तो इसने जानःबझकर बाजी हारी है, या इस धक्त इसका भी दिल ठिकाने नहीं है ! खैर जी हो। बाजी खतम होने घाद उसने कहा,-"वल्लाह, तुम तो दोस्त ! निहायत, उम्दः शतरंज खेलते हो मैंने कहा, अजी, लाहौल बढ़िये ! मला, बंदा ईस खेल को क्या जाने, तिसपर आपके आगे ! यह तो आपकी ऐन महरवानी थी कि आपने जान बझकर बाजी हार दी! . इस पर मलकाने एक कहकहा लगाया और कहा,---"अखाह ! हजरत को बातें बनाने तो खूब आता है ! लेकिन, जनाब, यह तो बतलाइए कि अगर आप इसी आगमोचैन के साथ हमेशः अपनी जिन्दगी बसर करना चाहें तो मैं समझती हूँकि बहुतही बिहतर हो!" मैंने कहा,-"आई, मुझसे फिर गलती हुई ! मुआफ़ करना ! तोबः तौब: मैंने फिर 'आप' कह डोला!" वह बोली,-"खैर मेरी चातका जबाव दो।" मैंने कहा, "माहेलका यह मेरी खुश किस्मती का बाइस है कि तुम मुझ नाचीज़ पर इतनी मिहवामी रखती हो! लेकिन सुनों और सोचो तो सही कि लाख आरामोचैन रहने पर भी मैं उस मुर्दे से कहीं गया, बीता है, जो कल में पड़ा सो रहा है और कभी सरज वों चांदका उजाला नहीं देखलकता! तुम्हारी यह विहिशनसीबाबगाह भी मेरे लिये जेलखाने से किसी कदर कम नहीं है क्या सोनेकी तोक