पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/८२

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  • सनऊ की कत्र

+ लेना। अब यह बतालाओ कि तुम अब कब यहां से चलोगे और निकाइ काने के बाद किस शहर में चलकर रहोगे ?" ने उहा, “ीफ यह कैसी शर्म की बात है कि मैं सीधी को दौलत से,ऐशो आराम करूं?" उसने का,-"क्यों हज़रत ! अगर तुम्हारी बीबी अपने मायके से अगर कुछ दोलन पाती या लातो, तो क्या तुम उस दौलत को भी इली हिकारत की नजर से देखते ?" मैंने कहा,-"प्यारी; ज़ोहरा ! मैं कायल हुआ यस अब तुम मुझे जियादा शानंदा नकरो और जो कुछ कहो,मैं करनेके वास्ते तैयार हूं।" . उसने कहा,--"तो अथ कब चलोगे !" - मैंने कहा -“प्यारी मैं तो अभी चलने के लिये तैयार हूँ। " वह बोला,"तो बहतर है, चला; लेकिन ठहरो और मुनो! इतनी जल्दी ठीक नहीं; आखिर मुझे भी तो अपने माल को, जो इधर उधर बिखरा हुआहै; इकट्ठा करके साथ लेना । पस, जब मैं हर तरहसे तैयार हो लूंगी और मौका देखूगी,तुम्हें यहांले निकाल ले बलंगी।" मैंने कहा- बेहतर, लेकिन जहां तक हो सके, जल्दी करनी चाहिये क्योंकि इस फफक से अब मेरा जी एक दम ऊब गया है।" . . वह,--"हां, जहां तक होसकेगा, मैं जल्दी करूंगी, लेकिन मौका भी तो हाथ आना चाहिये, क्यों कि मलका के महल से होकर जाना पड़ेगा, इस लिये जब तक मौका हाथ न आए, सब करना पड़ेगा। मैंने कहा,-"क्या किसी हिकमत से मलका को वेहोश करके अपना काम नहीं निकाला जा सकता ? " यह सुनकर उसने मेरीओर न मालूम किस मतलबसे मुस्कराकर देखा और कहा,-"यहतो तुमने बहुतही सही कही, ऐसा हा किया जायगा और इस कार्रवाही से, मैं समझती हूं कि मौका बहुत जल्द हाच आएगा।" मैंने कहा-“बस फिर क्या पूछना है ! इस कफस से छूटते ही