पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७४

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  • दरसन को

दालाई परिच्छेद । मेरो आज शाशिवाय ही है या हो यो की रही है। उसने और अंगलाई ले और दो बार जंदाई र उद लौंडी के 7 re, हम फेबी गुमनामी । मोका हुने विशादी करो कि इस तुम मेरे साथ कुछ बात चीत करती दी या ना कुरा और anti मा लोड़ी मी कहा.--"धोबी, तुमलोडी जिल्लाकी हो, सी , तुम्हें अपमान सा हूं और यह बात मेरे वताव शाय प्रेम की सुमपर शेरा होचुकी होगी। उसने कहा.--"ना, यह आपको ऐन शिहरवानी है कि आप मुझपर इतनी नजर रखते हैं पर एक नाचीज बांदी के शलाये और कुछ नहीं । मैंने कहा- यह तो तुम मेरे जसमी जिगर पर नमक छिड़कती हो! क्या तुम मेरे बर्तावको विल्कुल भूल गई। अफसोस, आज तुम "सुम लफ्ज़' छोड़कर फिर 'आप, आप' के सिलसिले को क्यों शुरू करती हो? | এছুক্ষল ,-~~-হুল্লাহ - নি যথাঃ ভাঁ কঙ্ক की लताई दुई हूं. इसलिये माइक पदवस पर रहम कीजिये और इस नीम बिस्मल को कलई करल न कीजिये। नसा --"अफसोस, अफलात तुए सोधी बात को जान बुझकर नाहक पहेली बाजारही हो और लाकहींकहती कि मेरा ऐसा क्याकुसूरे है. जिलकी वजह से तुम इस कदर अझ ये नाराज हो ! "