पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७२

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  • लम्ननऊ की कत्र मुफस्सिल हाल मैंने उसे सुना दिया, जिसे सुनकर उसने कहा,--

"लेकिन, यूफ़, मइललरा के अन्दर वैली कोठरी के होने का हाल मुझे जर मो मालूम नहीं है, इसलिये यह मै नहीं बयान कर सकती कि वह कोठरी महल के किस हिस्से में है और वहां पर तुमको किस औरत ने रक्खा था। जैसा कि तुमने बयान किया, उससे तो यही जान पड़ता है कि वो औरत तुम्हारी दुश्मन न थी, लेकिन फिर वह दरअस्ल कौन थी, यह मैं नहीं कह सकती। लेकिन सुना तो,जबकि उस मुकामपर आसमानी और उसकी बेगम पहुंच गई तो मुझे ऐसा मालूम पड़ता है कि हो न हो, वहां पर उसी बेगम ने तुमको रक्खा होगा और जब तुम उसके झांसे पट्टी में न आए होगे तो फिर उसने तुम्हें तकलीफ देने की नीयत से वहांसे दूसरे मुकाम पर पहुंचाया होगा!" ' मैंने उसकी इस किस्म की बातें सुनकर कहा,- मुम न है कि जैसा तुम कह रही है। दरअस्ल रात ऐसी ही हो !" उसने कहा, उसमें एक सुबत और भी है, यानी, मेरे पास जब तुम पेश्तर थे, तब भी तो वही नालायक बेगम मेरी सूरत बदलकर तुम्हें अपने दाम में फंसाने आई थी! " सात आई थी!" ' _मैंने जल्दी से कहा,--" वल्लाह, आपने बहुत ही सही फर्माया, और अब मुझे इस बात का पूरा यकीन होगया कि वहीं बेगम कभी तो मुझे आराम देती है और कभी तकलीफ पहुंचाती है।" . वह, और यह बात तभी तक है, जब तक तुम उसके दाम मैं नहीं फंसते; क्योंकि जिस दिन तुम उस चकाबू में फंस गए, उसी दिन कातिल औरत अपना दिली अरमान निकाल कर तुम्हें फौरन मार डालेगी। इतना सुनते ही मेरा खयाल उस खत की तरफ़ गया, जिसे मैंने, उसी गोल इमारत में,जिसमें कि पेश्तर इसी परीजमाल ने मुझे रक्खा था, चहारदरवेश नामी किताब के अन्दर से पाया था ! मैंने चाहा कि उस खत के बारे में इससे कुछ सवाल करू, लेकिन फिर यह समझ