पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/५७

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  • शाहीमहलसग * खन शौकिया किए होंगे। अय, पाक परवरदिगार ! तू कहाँ है ? इलाही ! तू का सुझो इस बला में डाले रहेगा ?"

इतना कहते कहते मारे गुरु के में कांपने लगा और ने देखा कि वह बदजास औरत भी लाल ला3 आँखेंजर मेरी तरफ शेरनी की तरह तक रही है। लेकिन किसी मौत आरी चकी थी तो फिर उससे डरने से फायदा कमा था? यह सोच कर मैं फिर कहने लगा: " अय नदनसीव औरत से दिल थामा ती माही देता है कि तेरी और दिलाराम की एकली सूज होने का खास वजह ज़रूर है ! मुमकिन है कि तुम दोनो एकही मोके पेट से पैदा हुई होवो, लेकिन खैर, अब तेरे दिल में जो आवे, से। कर, क्योंकि मैं मरने से नहीं डरता, मगर इतना तो बाकि दिलाराम में और तुझ में कौन रिश्ता है और तू उसका क्या किया?" उसने एक गहरी सांस ली और बड़े गुस्ते के साथ कहा,"बदबहत, अब मैं तेरी किसी बात का जबावन दूभी और बहुत जल्द तुझे तेरो अज़ल के सुपुर्द कर दूंगी । पस, अक्षतू बाजी गौर करले और जो तुझे अच्छा जान पड़े, वह कर; लेकिन इतना मैं फिर भी कहती हूं कि नाहक तू अपनी जवानी वर्याद न कर और जबरन मौत का निवाला न बम।" __ मैंने कहा,--. लेकिन, बगैर दिलाराम के मैं जी ही कर क्या करूंगा? घह कहने लगी, दिलाराम के निस्बत तो मैं तुझसे कह चुकी हूं कि मैं तुझे उसकी बनकारी का तमाशा दिखता दूंगी।" मैंने ,-"लं कितनी अब मैं वह देखना नहीं चाहता.क्यों कि उसे तूहीने जात जूझ कर खराव किया होगा। एस,मह बिल्कुल बेकसूर है और मै उसे और उसके गुनाही का तहेदिल से मुशाफ़ करना है और यही आरज़ रसमावेशि सदा भी इसकी खताओं का मुाफ़ करे और विदिश्त उसे सुझसे ज़रूर पिलावे.