पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/४७

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  • शाहीमहलसरा उसने कही,--- उसे आज छियालीसवां दिन है !!!"

अय गज़न ! छियालीस दिन से मैं इल कोठरी में मौजद हूं!!! लेकिन मुझो इस की कुछ भी खबर नहीं है ? ओह,यह एक ऐली बात थी कि जिसने मेरे कलेजे को ज़ोर से मसल दिया और मैंने उस नकाबपोश औरत से कहा,-" या वाकई, मैं इतने दिनों से इस कोठरी में मौज़द हूं ?" उसने कहा,-- बेशक, अगर तुमको मेरी बातों पर यकीन न हो ताइले सही जानों।" मैंने कहा, "अल्लाह ! लेकिन मुझो तो इसकी मुतलक पद नहीं है! उस ने कहा, तुम्हें याद है। क्यों कर! क्योंकि जिस दिन से तुम यहां आप,उसी दिनसे सरह बीमार होगर थे। मुभो तो इस बात की उम्मीद ही न थी कि तुम बचेगे, लेकिन मैं समझती हूं कि अभी तुम्हारे आवाहयान के प्याले के लबालब भरने में बहुत देर है। मैंने पूछा,--“मुझे कौनसी बीमारी हुई थी ?" उसने कहा, सरशाम ! मैं, ऐसा ! लेकिन, इस कैदखाने में मेरी दवा किसने की ? वह. -"मैंने की । मैं,--(ताज्जुब से) क्यtतुम हिकमत भी जानती है। ? " वह, वेशक, क्योंकि शाहीमहलसरा की औरतों को दवादारू मैंही करा करती हूं। " ___ मैं,--" मला, तुमको मेरी दशा के लिये किलने मुकर किया है ? वह,--आसमानी ने। - मैं ताज्जुब ! सरासर ताज्जुब काम काम है कि जो आसभानी मेरे खून को इस कदर प्यासी है. यही मेरी दवा के वास्ते तुमको मुकर्रर करे. और ख़ास कर ऐसी हालत में, जब कि सिर्फ उसी के समय में इस बीमारी में मुखतिला हुआ था!" उसने कहा,--" लेकिन, साहद, अब, तो आसमानी आपकी दोस्त मालूम देती है।"