पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/३

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॥ श्रीम लखनऊ की कब्र वा शाही महलसरा दूसरा हिस्सा पहिला बयान । “तिहारे सैयां धूंवर वाले बाल !" मेरे कानों में इस उमरी को रसीली धुन, जोकि किसी सुरीले गले की गिटकिरी में पगी हुई थी, पहुंची। जिसके पहुंचते ही मेरी बेहोशी, या यों कहूं कि नींदर हुई और मैंने आंखें खोलकर देखा कि मैं एक बहुत ही भड़कोले और सजे सजाये कमरे में मखनली छरखट पर लेटा हुआ हूं और एक बहुत ही हसीन नाज़नी मेरे चहरे के करीब अपना मुह लाकर मुझे प्यार भरी चितवन से निरख रही है !!! यह देख कर मैंने एकत्रेर फिर आंखें बन्द करली और कुछ देर के बाद जब फिर अखें खोलों तो उस कमरे में किसी को न पाया और चारों ओर वखूवी देखकर यही तसोवर किया कि यह जगह बिल्कुल नई है ओर यहांपर मैं आज के पहिले को नहीं आया हूँ : मैं पलंग पर उठ बैठा और अंगडाई ले लेकर आती खुपारी दूर करने लगा । उस वक्त कुल बातें मेरे ध्यानी आने लगों ओर आस मानीकी खौफ़नाक शकल मेरी आंखांझे सामने यूपने लो। मैंने दिल