पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१९

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  • शाहीमहलसग तीसरा परिच्छेद ।

सुबह जव मेरी नींद खुलो,बक मामूली से ज़ियादह गुज़र गया था और मेरी कोठरी में वन की उत्ताता फैला हुआ था। आखिर, मैं उडा और पादान रोशन करके उस कोठरी की जमीन को खत बारीक नज़र से देखने लगा,लेकिन वहां पर एक द्वारा खान भी कहीं पर नज़र न आया ओर नयाडी लान पड़ा कि कल रात को इल कोठरी में दो फसाद, या खूनारेजी होगई है ! ___इस तमाशे को देखकर मैं हैरान होगया और इसे भी स्थाय समझने की कोशिश करने लगा, लेकिन मेरे दिल ने इले मज़र न किया और यही कहा कि यह सयाक हर्गिज नहीं है। देर तक मैं बैठा बैठा इन्हीं बातों पर शोर करता रहा, लेकिन इस पें बीती भूलभुलैया का कुछ भी मतान्ने री समझ में न आया । तर तो मैंने यह द्वारा किश कि आज दिन भर हम्मान में न जाकर यही अडा रद्ध और जो खाना लेकर आए, उसे गिरफ्तार करूं, लेकिन पेश्वर के हालात मझे. भूले न थे और यह मैं जानता था कि अगर मैं सा इरादा करूंगा तो खाना लेकर कोई न आवेगा । आखिर, मैं वक्त मामूली से ज़ियादह होने पर हस्पार में गया और वहाले बहुत जल्द वापस आकर देखता हूं कि खाना मौजूद है। मो, रात के समाशे और दिल की उदासी के समय मेरी तबीयत खाना खाने को न लेकिन कि यह समझ कर किन खाने से ओर भी नानाकसी बढ़ेगा,मैं जाना खाने की मेज के पास कुर्सी पर जा बैठा और रकाबी के डकने को खेल कर देखता हूँ ते। उल में एक खत नजर आया। मैंने उसे उठा लिया और लिफाफा फाइ कर पढ़ना शुरू किया । उस खत में जो कुछ लिखा था,उसकी नकल हम नीचे किए देते है। - जानसन सलामत फल शव को किसी वजह से आपके माराम करने में खलल