पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१०

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  • लखनऊ की कब्र के दोस्ताना बरताव रक्लो। खैर यह तो जो कुछ है, से। हई है, अब मटला की बात यह है कि अगर तुमको दिलाराम के दस्तया करने की वाहिश हो तो यहां से बाहर जाने का कल्द हर्गिज न करो। ___ उस नाज़नी की जवानी यह बात सुन कर मैं है हौगया और हैरत से पूछने लगा कि -"क्या, तुमको दिलाराम का हाल मालूम है ?"

इल पर उसने कहा, "मुझे तुम्हारा या दिलाराम कालाराहाल मालूम है और मैं तुम्हें यकी दिलातो हूं कि अगर सदा ने चाहा तो मेरेही जरिये तुम उसे पा सकेगे।" इतना सुन्येही मैंने प्यार के साथ उस परी का हाथ अपने हाथों में लेकर चूम लिया और कहा,-"ते क्या निहरवानी करके इस वक्त इतना तुम बहला देगी कि मेरी विन्टरुश दिलाराम कहां है ? " उसने कहा,-- जरूर बतलाऊंगो,लेकिन अभी नहीं क्योंकि अभी उसके हाल बतलाने में तुम्हारा और उसका बड़ाभारी नुकसान होगा, यतककि, अजब नहीं कि तुम फिर उसे ताकयामत न पालकी और उलकी जानोंपर आबने । दाजरोन ! यह एक ऐसी बेढब रात थी कि जिसे सुनकर मैंने फिर उस लिक को छोड़ दिया और इधर उधर की बात करने लगा। कुछ देर के बाद, जब मैं मामूली कामों से फारिग होचुका तो उस परी के साथ मैंने खाना खाया और दिनभर चौसर गंजीफ़ • में फंसा रहने के बाद रात को बड़े आराम से सोया।