पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/९९

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बर्बाद होगया । इसके बाद तमाशेवाले गहरा इनाम लेकर रुखसत हुए और आदशाह सलामत अपने दूरबारी अगरेज़ों को रुखसत करके सख्त से नीचे उतरे । गो, हज़रत तख्त से नीचे उतरे, लेकिन नशे के सबब उनका पैर लड़खड़ाया तो उन्होंने बड़े जोर से मेरा हाथ थाम्ह लिया और मेरे कन्धे का सहारा लेकर चलने लगे । उस वृक्त मेरी मणार नाज़नी ने बड़ा काम किया और चट वह वाशाच्च कीं दूसरी तरफ जा खड़ी हुई और उसने मेरे हाथ को बादशाह के हाथ से छुड़ाकर अपने हाथ में कर लिया । यह हम सभों ने सहारा देकर बादशाह को दूसरे कमरे में ले जाकर पलंग पर लिटा दिया। वहां पर बादशाह की कई चहेतियां पहले ही से मौजूद थीं, इसलिये मेरी मददगार नाज़नी सब मोरङल-वालियों के साथ वहां से रफूसक्कर हुई और उन सभों को उनके चौक में छोड़ मुझे लिए हुई पहिले अपने कमरे में आई, जहाँपर भेस बदल कर मैं औरत से मर्द हुआ और इसके बाद वह उसी तरह मुझे मेरी कोठरी में लेआई । वहाँ आकर मैने उसे अपने बगल में पलंग पर बैठा लिया और कहा,--- देखो, आज कयामत वरपा हो चुकी थी। आह, जब बादशाह ने मेरी कलाई ज़ोर से पकड़ी, तब मेरी जान हो निकल - चुकी थी।" यह सुनकर उसे नाज़नी ने एक कहकहा लगाया और कहा,* अल्लाह ! अगर तुम ऐसे नामर्द हो तो शाहीमलसरी में किस हिम्मत से तशरीफ़ लाए ! " मैने कहा,-" आज, घड़ा गज़ब होचुका था।” उसने कहा, लेकिन मैने कैली फुर्ती की और किस दिलेरी के साथ उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर तुम्हारी छुट्टी करदी ।। । मैने कहा;-“हां, तुम्हारी इस दिलेरी की जितनी तारीफ की जाय, सब थोड़ी है; लेकिन यह खिलवाड़ तुमने वेढब खेला ! " | गरज़, देर तक इसी किस्म की बातें होती रहीं, इसके बाद वह | भुझने रुखसत होकर चली गई और मैं पलंग पर लेट गया है ।