पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८४

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  • लश्थनऊं को कब ॐ

यह देख इक्का बक्की सी हो मैं अखि मलमल कर चारों ओर - देखने लगीं, क्योंकि वहाँ पर मोमी शमादान जल रहा था, इतने ही में मैने एक निहायत ही हसीन, नाजुकबदन और नौजवान नाज़मी झो अपनी तरफ आते देखा। उसे देखते ही मैं तेजी के साथ उठकर अड़ा होगया और चाहता था कि कुछ कहूं, पर उसने अपने श्रो पर उंगली रखकर मुझे चुप रहने का इशारा किया और मेरे पास अाकर धीरे से कान में कहा,. .. . * खरदार, मुंह से चू भी न करना और जो कुछ मैं करू, उसे गैर लब हिलाए देखते रहना । यो कहकर और मेरा हाथ पकड़कर यह मुझे उसी कमरे के बगलवाली एक कोठरी में लेगई। वह कोठरी भी जो हुई थी और वहाँ पर लेटको दुई घड़ी में मैंने देखा कि सात बज कर कई मिनट बीत चुके थे। .. . ... ... २३किस्सह कोताह, वहाँ लेजाकर उसने मुझे एक कुर्सी पर बैठा, .: मेरे लंबे बालों में खुशबूदार तेल डालकर चोटी गुही और चेहरे पर किसी किस्म का रौगन लगाकर कोई सूखे रंग की बुकनी धीरे धीरे • मली। इसके बाद उसने मुझे घेरदार लालरंग के रेशमी पायजामे को पहिराकर उसके घेरे को उठाकर आगे इज़ारबंद की जगह पर खोस दिया । फिर नकली छाती लगाकर उसने मुझे ज़रदोज़ी काम की " स्याह साट्न की कुरती एहराई और इसके बाद बादले के काम की बहुतही बारीक सूफियानी और धानी रंगकी ओढ़नी सिरसे उढ़ा। इसके बाद मेरी कमर पर जरो की पेटी कसी गई, क़रीने से जेवरात “पहिराए गए और हाथ में सोने की डंड़ो का जड़ाऊ एक मोरयाले दिया गया। । नाज़रीन ! वह रंगीली औरत जबतक अपनी मनमानी यह कार्रवाई करती रही, तबतक मैं सन्नाटा मारे हुए चुपचाप था, इसके बाद जब . उसने मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया तो मैंने धीरे से कहा,

  • अर्थ इज़रत ! मुझे खासी नाज़नी बनाकर तुम कहां लेचली ?”

| यह सुनकर उसने बहुत धीरे से मेरे कान में कहा,--चुपचाप