नवां बयान।
बस इसके बाद फिर क्या हुआ, इसकी मुझे कुछ भी ख़बर नहीं लेकिन जब मेरी आंख खुली तो मैं क्या देखता हूँ कि मेरा सिर मारे दर्द के टुकड़े टुकड़े हुआ जाता है और सारे बदन में भी शिद्दत से दर्द है । मैने उठना चाहा, पर उठ ने सका, क्योंकि मुझे ऐसा जान पड़ा कि मैं निहायत कमज़ोर हो रहा हूँ।
यह हाल देखकर मैंने करबट ली पर चैन न पड़ा तब दूसरी करवट बदली, तो भी चैन न हुआ। अखीर में घबराकर मैं चित पड़ा रहा और सोचने लगा कि मैं कौन हैं; कहां हूं, यह मुकाम कौन है। और यहाँका मालिक औौन है; लेकिन उस वक्त मेरी समझ में कुछ न आया और मैंने आंखें बंद कर ली।
फिर कब तक मैं बदहवास, इसका बयान में नहीं कर सकता, लेकिन दुबारः जय मैं होश में आया तो मैंने क्या देखा कि एक नकाबपोश औरत सेरे सिरहाने बैठी हुई मेरे सिर में कोई दवा मालिश कर रही है। यह देखकर मैने उससे यह पहला सवाल किया,--मै कहाँ हूँ?"
मेरे इस सवाल को सुनकर शायद उसे कुछ खुशी हासिल हुई होगी, क्योंकि उसने बड़ी हमदर्दी के साथ कहा,--" या रब ! तू बड़ा कारसाज़ है।"
मैने ज़रा ठहर कर फिर उससे पूछा,--“मैं कहां हूं ?
यह सुन और मेरे कान के पास अपने मुहं को लाकर उसने बहुत ही धीरे से कहा--"चुपचाप पड़े रहो; क्योंकि अभी तुम बहुतही कमज़ोर हो।”
मैने कहा,--"तुम कौन हो ?"
उसने उसी तरह धीरे से कहा,--"चुप रहो, तुम अपने दोस्त के यही हो ।