पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/५५

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  • शाहीमहलसरा मैने चाहा कि सुईट से उतर कर इस बात की जांच करू कि इतकी मज़बूत लोहे की खाट क्यों कर हिली, लेकिन मुझे ऐसा करने का मौका ही न मिला है क्योंकि ज्यहीं वह खाद्ध हिली, त्योंही नीचे की और जाने लगी, और जब तक मैं कुछ गौर करू, वह तेजी के साथ बहुत ही नीचे जारही ! जहां तक उसके जाने की हद् रही होगी, वह तक जाकर वह ठहर गई और एक लहजः ठहर कर वह इस तेज़ी के साथ उलटी कि मैं एक दम से नीचे पानी में जा गिरा और जब तक अपने हाथ पैर सम्हालूं, कई गोते खागया। । आह ! उस वक्त मेरे दिल पर जो कुछ गुजरी, उसका बयान में किसी तरह नहीं कर सकता और न उस मुसीबत का अन्दाज़ा प्यारे नाजरी ही किसी तरह कर सकते हैं। उस्ल खौफनाक अंधेरे में भी मैं अपनी मौत को अपनी आंखों के आगे नाचती हुई देख रहा था और कुछ ही लहजे के लिये अब में इस दुनिया में मेहमान था। मैंने उस गज़ब के अंधेरे में चारों ओर कुछ दूर तक बढ़कर देखा, पर किसी ओर मुझे दीवार न मिली, डूबकर भी कई मर्तबः मैने गोते लगाए, पर पानी की तह तक मैं न पहुंच सका । तब मैने दिलही दिल में यही समझा कि या तो यह खूब लबा चौड़ा और निहायत गहरी सालथि होगा, यो दुर्याय गोमती में में गिराया गया होऊगर ।

गुरज वह कि मैं खुदा को याद करता हुआ बराबर तैरने लगा। अपने खाली अन्दाजे से मैं हर चहार तरफ दूर तक बढ़ता गया, लेकिन मुझे किसी तरफ भी किनारान मिला। गोते भी मैने कई मर्तब लगाए, लेकिन पानी की तह तक मैं न पहुंचा । योही अद्भुत देरतक मैं तैरता रहा और दिल्ही दिल में यही सोचता रहा कि बस, अब की झपेटे में मौत मुझे खाया चाहती हैं । । धीरे धीरे मेरे हाथ पैर ढीले होने लगे, दम फूलने लगा और सारे बध में कपकपी होने लगी । यहां तक कि मैं थक कर सोहा लाग्य और इस मर्तब: मैं पानी की सहुतक पहुंचा । वहां पहुंच कर मैने एक बहुत ही मोटी अँजीर पाई, जो शायद् लोहे की रही होगी। इसके