तीसरा बयान ।
मैं कब तक बेख़बर पड़ा हुआ सोया किया, इसकी मुझे कुछ भी ख़बर न थी, लेकिन जब मेरी आँखें खुलीं, सो मैंने क्या देखा कि,--ही परीजमाल, जो मुझे उस मनहूस क़ैदखाने से यहाँ ले आई थी, है पलंग के पास एक कुर्सी पर बैठी और पलंग की पाटी को सना लगाए हुए मेरी तरफ मुहब्बत से देख रही है।'
उसकी ऐसी महरबानी और मुहब्बत को देख मैं चट उठ बैठा और उसका शुक्रियाअदा करके कहने लगा,--"अयं शहेरुन ! गो, भी तक मुझे यह नहीं मालूम है कि मैं किस परी पैंकर को नेकियों के झ से दबा चला जाता हूं, लेकिन हां, इतना तो मेरा दिल ज़रूर क से कह रहा है कि,'अय यूसुफ ! इस वक्त तू जिस नाज़नो को रवानियों के सदके होरहा है, वह कोई मामूली औरत नहीं है, क वह रुतबे और दौलत में इतने अलैदर्ज पर है कि तुझसे कड़ोरों ।। वीज़ों को मोल ले सकती है। इसलिये अय, मेहरबान सब्ज़परी ! मैं यह जान सकता हूं कि इस बुक मैं किस रहमदिल और खूबरू हनी का मेहमान हो रहा हूं ।
मैंने वहशत के अलम में एक दम इतनी बातें कह डाल, पर । सुनकर उस परीजमाल ने जरा मुस्कुरा कर अपनी कातिले आखें चहरे पर जमाई और हंसकर कहा, “यूसुफ !तू जो इतना फिजूलें, गया, उसका मतलब मैं सिर्फ इतना ही समझती हैं कि तू यह इना चाहती है कि इस वक्त तु कहाँ पर है और तेरे रूबरू जो नी बैठी हुई है, वह कौन है ?"
उस परीजमाल की बातें सुन कर मैंने कहा,--हां, हाँ ! मेरा व सिर्फ़ इतना ही है, जितना कि तुमने समझा है।"
उस परीजमाल ने अंगड़ाई लेकर कहा,“खैर, तो मैं अपना और का हाल तुझे पीछे बतलाऊंगी, बिफेल में तुझ से यह पूछी ती हूं कि तू कौन है; यहां क्योंकर आया और नज़ीर को तू ने मारा ?
मैंने कहा,--'ये बातें तो में अभी तुम्हें बतलाए देता हूं।